रांची, 12अक्टूबर (वार्ता) झारखंड की राजधानी रांची के संत जेवियर्स कॉलेज सभागार में आदिवासी - मूलवासी प्रोफेसर एसोसिएशन द्वारा आयोजित " संविधान में आदिवासी - मूलवासियों का अधिकार बनाम जमीनी हकीकत " विषय पर एक दिवसीय सम्मेलन का आज आयोजन किया गया।

इस सम्मेलन में 24 छात्रावास के छात्र - छात्राओं ने युवाओं के समक्ष मौजूदा चुनौती और वोट के अधिकार पर संवाद में हिस्सा लिया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस के मीडिया एवं पब्लिसिटी डिपार्टमेंट के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने कहा कि एसआईआर के नाम लोगों से तब के कागज मांगे जा रहें है जब कागज का आविष्कार भी नहीं हुआ था। श्री खेड़ा ने कहा कि आज देश में भाषा, भोजन, पोशाक के नाम पर पाबंदी और हमले हो रहें है। इसका जवाब संविधान के हथियार से दिया जा सकता है। वोट का अधिकार अपनी पहचान और मिटते अस्तित्व को बचा सकता है। संविधान में दिए गए जनता के अधिकार को समझने और उसे हासिल करने की जरूरत है ।

श्री खेड़ा ने कहा कि ये महज एक किताब नहीं , बल्कि वो ग्रन्थ है जो आपके भविष्य को तय करता है। सन 1857 से पहले अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी समाज ने विरोध का बिगुल बजाया था।

विकास के नाम पर जहां शहरों का विकास हुआ, वहीं विकास का बोझ आदिवासी समाज को उठाना पड़ा।

हैरानी की बात है कि आदिवासी समाज को ये आदिवासी कहने के बजाय वनवासी के नाम से पुकारते है। इन्हें आदिवासी कहने में शर्म आती है। श्री खेड़ा ने कहा कि आज दो सेठों के लिए सारे नियम कानून को ताक पर रखा कर जल - जंगल और जमीन पर कब्जा किया जा रहा है। बगैर अनुमति के लोगों से उनकी जमीन छीन ली जा रही है।

देश के संविधान में कांग्रेस की मानसिकता झलकती है। कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि लोकतंत्र खतरे में है ये सिर्फ राजनीतिक स्लोगन नहीं है, बल्कि एक संगठन के द्वारा समाज को जाति - धर्म - भाषा में बांटने की चल रही साजिश का सच है। धर्म से ऊंचा मानव समाज है। समाज को तोड़ने के खिलाफ किसी भी साजिश का जवाब संवाद है।

संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों को बचाए रखने के लिए जनता को निरन्तर प्रयास करते रहना होगा। आदिवासी बचेंगे, तभी मूलवासी भी बचेंगे। इस बात को गांठ बांध लेने की जरूरत है।

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