शिमला , नवंबर 28 -- हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार को कड़ी चेतावनी जारी की है तथा कहा है कि तदर्थ, संविदा या दैनिक वेतन भोगी आधार पर, विशेष रूप से न्यायालयों में, की गई नियुक्तियाँ न्यायालय की अवमानना के समान हो सकती हैं।
यह चेतावनी एक जनहित याचिका में पारित उस विस्तृत आदेश के परिप्रेक्ष्य में दी गयी है, जिसे बुधवार को उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। इस आदेश में पीठ ने वित्त सचिव को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के विपरीत नीतियां अपनाने के लिए फटकार लगाई।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि 'स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम सूरजमणि (2025)' मामले में दिए गए फैसले के बावजूद, राज्य ने नए बनाए गए न्यायिक पदों पर दैनिक वेतन, अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) और आउटसोर्सिंग के आधार पर कर्मचारियों को नियुक्त करना जारी रखा। इस मामले में 'उमा देवी' मामले के फैसले के अनुसार नियमित नियुक्तियाँ अनिवार्य की गई थीं। न्यायालय ने टिप्पणी की कि यह कदम उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के "विपरीत" है और "अवमानना के समान" है।
न्यायालय ने सरकार को याद दिलाया कि न्यायिक प्रणाली चलाने जैसे संप्रभु कार्य अस्थायी कार्यबल से संचालित नहीं किए जा सकते। न्यायालय ने पाया कि जिला एवं सत्र न्यायाधीशों और दीवानी मामले के न्यायाधीशों के लिए आवश्यक सहायक कर्मचारियों को भी गैर-नियमित शर्तों पर नियुक्त किया गया।
उच्च न्यायालय ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के लगातार अवरोध और अपर्याप्त वित्त पोषण के लिए भी राज्य नौकरशाही को नोटिस दिया। पीठ ने रिकॉर्ड किया कि 10 करोड़ रुपये की आवश्यकता के मुकाबले, केवल 469.11 लाख रुपये जारी किए गए हैं, जिससे आधिकारिक वाहन, बुनियादी ढांचे के समर्थन और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लंबित भुगतानों जैसी आवश्यक ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाई हैं। न्यायालय ने वित्त विभाग को पिछले दो वर्षों में अस्वीकृत सभी लंबित प्रस्तावों पर एक शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश देते हुए स्पष्ट कर दिया कि अपर्याप्त अनुपालन पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। मामले की अगली सुनवाई 08 दिसंबर को होगी।
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