नाहन , नवंबर 26 -- हिमाचल प्रदेश सरकार की समय से पहले रिहाई नीति के तहत नाहन की मॉडल सेंट्रल जेल से उम्रकैद की सजा काट रहे चार कैदियों को रिहा कर दिया गया है।
जेल प्रशासन ने पुष्टि की है कि उम्रकैद की सजा काट रहे छह कैदियों के लिए सिफारिशें राज्य सजा समीक्षा बोर्ड को भेजी गई थीं क्योंकि उन्होंने 14 वर्ष की सजा पूरी कर ली है और जेल में उनका आचरण संतोषजनक रहा है।
जेल अधिकारियों के अनुसार समय से पहले रिहाई की सिफारिश केवल उन्हीं उम्रकैद के कैदियों के लिए की जाती है जिन्होंने न्यूनतम 14 वर्ष की सजा काट ली हो और जेल में उनका आचरण अच्छा रहा हो। इस बार नाहन जेल से ऐसे छह कैदियों के नाम राज्य सजा समीक्षा बोर्ड को भेजे गए थे।
इनमें से चार कैदियों को सभी कानूनी एवं प्रशासनिक औपचारिकताएं पूरी करने के बाद रिहा कर दिया गया है। शेष दो कैदी (एक छत्तीसगढ़ और एक अमृतसर का) अभी रिहा नहीं हो सके हैं, क्योंकि संबंधित जिला उपायुक्तों से 10,000 रुपये के जमानत बंध पत्र की सत्यापित रिपोर्ट अभी तक नहीं मिली है। रिपोर्ट मिलते ही उनकी रिहाई की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। रिहा हुए चार दोषियों में सिरमौर, बिहार, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के निवासी शामिल हैं। इसी बीच जेल प्रशासन ने छह और कैदियों के मामले सिफारिश के लिए तैयार कर लिए हैं, जो शीघ्र ही 14 वर्ष की अर्हता अवधि पूरी कर लेंगे।
निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार जेल विभाग योग्य कैदियों पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करके उसे अतिरिक्त महानिदेशक (जेल) को भेजता है। इसके बाद एडीजी इसे गृह सचिव की अध्यक्षता वाले राज्य सजा समीक्षा बोर्ड के समक्ष रखता है। बोर्ड की स्वीकृति के बाद मामला अंतिम मंजूरी के लिए राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने पर ही रिहाई के आदेश जारी होते हैं।
हाल ही में राज्य सरकार ने एक नयी शर्त जोड़ी है कि रिहाई से पहले संबंधित जिला उपायुक्त के पास 10,000 रुपये का ज़मानत बंध-पत्र जमा करना अनिवार्य है। उपायुक्त द्वारा ज़मानत बंध-पत्र की जांच-पड़ताल कर रिपोर्ट जेल विभाग को भेजने के बाद ही रिहाई मंजूर की जाती है।
उच्चतम न्यायालय ने समय से पहले रिहाई के संबंध में विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं और राज्य सरकारों को मानवीय एवं संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी है। न्यायालय ने अपराध की प्रकृति, काटी गई सजा की अवधि, जेल में आचरण तथा समाज पर संभावित प्रभाव आदि बिंदुओं पर ध्यान देने को कहा है। राज्यों को कानूनन सजा माफी/कम करने का अधिकार प्राप्त है।
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