शिमला , नवंबर 26 -- हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग के परवाणू-कालका खंड में एचपीएमसी फल प्रसंस्करण संयत्र के पास खराब हुए सेब और कचरे के जमा होने के मामले में अपनी निगरानी और सख्त कर दी है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायमूर्ति ज्योति लाल भारद्वाज की पीठ ने मंगलवार को सेब के छिलकों के निपटान की स्थिति और राजमार्ग के किनारे सेब से भरे ट्रकों के खड़े रहने से पैदा हो रही पर्यावरणीय चिंताओं की समीक्षा की।

इससे पहले गत 25 नवंबर को पिछली सुनवाई में न्यायालय को बताया गया था कि पहले के आदेशों के बावजूद सेब सीजन के दौरान छिलकों और तरल अपशिष्ट के निपटान संबंधी 20 मई के विस्तृत आदेश में उल्लिखित कई मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं।

पीठ ने टिप्पणी की कि सेब की नीलामी की मात्रा में भारी गिरावट आई है। यह 2024 में 16,657.300 टन से घटकर 2025 में मात्र 4,035 टन रह गई है। एक चल रही पेक्टिन यूनिट शुरू होने से सेब की गुठलियों की मात्रा में और कमी आने की उम्मीद है।

न्यायालय ने गहरी चिंता जताई कि सड़े हुए सेब की खेपों से तरल अपशिष्ट का रिसाव अब भी बड़ा खतरा बना हुआ है।

पीठ ने संबंधित विभागों और एचपीएमसी को नए हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें परवाणू-पिंजौर नेशनल हाईवे किनारे टिपरा (गुम्मा) सहित सभी अधिसूचित नीलामी स्थलों पर सड़े हुए सेब, सेब की गुठलियों और उससे निकलने वाले गंदे पानी के सुरक्षित निपटान के लिए ठोस उपायों का पूरा ब्योरा दिया जाए।

मामले की अगली सुनवाई 1 जनवरी 2026 को होगी।

गौरतलब है कि 2022 में मार्केट इंटरवेंशन स्कीम के तहत हाईवे किनारे बदबू, सड़े हुए सेब और कई-कई दिनों तक ट्रकों के खड़े रहने की खबरों के बाद कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए यह जनहित याचिका शुरू की थी। लगातार सुनवाइयों में राज्य सरकार, एचपीएमसी और हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी कर कचरा प्रबंधन, निपटान योजना और पर्यावरण संरक्षण के उपायों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए थे।

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