चंडीगढ़ , दिसंबर 25 -- पंजाब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता प्रो. सरचंद सिंह ख्याला ने साहिबज़ादों की शहादत दिवस को 'बाल दिवस' के रूप में मनाने को लेकर अकाली दल द्वारा अतीत में की गयी वकालत और आज जतायी जा रही आपत्तियों के बीच मौजूद स्पष्ट विरोधाभास को उजागर करते हुए गुरुवार को एक और अटल एवं दस्तावेज़ी प्रमाण सार्वजनिक किया है।

प्रो. ख्याला ने कहा कि 14 नवंबर 2019 को, जब पूरे देश में बाल दिवस मनाया जा रहा था, उसी दिन हरसिमरत कौर बादल ने अपने आधिकारिक एक्स (ट्विटर) अकाउंट से पंजाबी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में स्पष्ट रूप से लिखा था, " बाल दिवस दसवें पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादों को समर्पित किया जाना चाहिए। हक़, सच और धर्म की रक्षा के लिए छोटे साहिबज़ादों की कुर्बानी विश्व इतिहास में अद्वितीय है और उनके नाम पर मनाया गया बाल दिवस आने वाली पीढ़ियों को सही दिशा देगा। "प्रो ख्याला ने कहा कि यह एक्स उसी दिन दोपहर दो बजकर 57 मिनट पर की गयी थी और इसके साथ चिल्ड्रेनडे हैशटैग भी प्रयोग किया गया था। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी वे ठोस दस्तावेज़ी और अख़बारी प्रमाणों सहित कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि साहिबज़ादों की शहादत को 'बाल दिवस' के रूप में मनाने की मांग स्वयं अकाली दल की ओर से की गयी थी।

प्रो ख्याला ने याद दिलाया कि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और तत्कालीन दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. की अगुवाई में दिल्ली के विज्ञान भवन में दिल्ली कमेटी के बैनर तले आयोजित सेमिनार के दौरान साहिबज़ादों की शहादत दिवस को देशभर में 'बाल दिवस' के रूप में मनाने के लिए केंद्र सरकार को सिफ़ारिश करने की घोषणा सार्वजनिक रूप से की गयी थी, जिसकी तस्वीरें और अख़बारी रिकॉर्ड आज भी मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सांसद हरसिमरत कौर बादल की 'एक्स' पोस्ट और दिल्ली कमेटी का उस समय का निर्णय आज अकाली दल द्वारा जतायी जा रही आपत्तियों पर गंभीर सवाल खड़े करता है और यह बिना किसी संदेह के साबित करता है कि छोटे साहिबज़ादों की शहादत को 'बाल दिवस' के रूप में मनाने की मांग पहले अकाली दल की अपनी नेतृत्व द्वारा ही की गयी थी। इन अटल प्रमाणों के बावजूद आज अकाली दल बादल के नेताओं द्वारा अपने ही पुराने रुख़ से मुकरना केवल एक राजनीतिक यू-टर्न नहीं, बल्कि दोहरेपन, अवसरवादिता और सिख भावनाओं से खिलवाड़ की खुली मिसाल है।

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