राजकोट , दिसंबर 26 -- गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत की अध्यक्षता और शिक्षामंत्री डॉ. प्रद्युमन वाजा की उपस्थिति में राजकोट में सौराष्ट्र विश्वविद्यालय का 60वां दीक्षांत समारोह शुक्रवार को आयोजित किया गया।

दीक्षांत समारोह में कुल 43,792 विद्यार्थियों को डिग्रियां प्रदान की गईं। सौराष्ट्र विश्वविद्यालय एवं दाताओं के सहयोग से 186 विद्यार्थियों को 271 पुरस्कार दिए गए। साथ ही 14 विद्याशाखाओं के 160 विद्यार्थियों को कुल 178 स्वर्ण पदक प्रदान किए गए, जिसमें छात्राओं को 129 और छात्रों को 49 स्वर्ण पदक शामिल हैं।

श्री देवव्रत ने कांजी भुट्टा बारोट रंगमंच पर 'स्वदेशी अपनाओ-स्वदेशी को प्रोत्साहित करो' थीम के साथ आयोजित इस दीक्षांत समारोह में कहा कि विद्यार्थियों और गुरुजनों ने अपने दायित्व का निर्वहन किया है, जिसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी अध्ययन पूर्ण कर डिग्री प्राप्त कर सके हैं। भारतीय संस्कृति में विद्या का अत्यधिक महत्व है, विद्या से बड़ा कोई दान नहीं। गुरु वही हैं जो शिष्यों को अज्ञानरूपी अंधकार से ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर ले जाएं। हमारी प्राचीन शिक्षा परंपरा में गुरु के लिए 'आचार्य' शब्द का भी प्रयोग हुआ है,वह जो केवल अक्षरज्ञान ही नहीं देते, बल्कि शिष्यों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनके जीवन-निर्माण की जिम्मेदारी भी उठाते हैं।

उन्होंने कहा कि प्राचीनकाल में भारत अनेक विद्याओं से समृद्ध देश था और शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोग भारत आते थे। वर्तमान समय में देश इस पुरानी परंपरा के साथ कदम मिला रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी के नेतृत्व में विदेशी विद्यार्थी अध्ययन के लिए भारत आ रहे हैं, जो गर्व की बात है। नई शिक्षा नीति में कौशल पर भी विशेष जोर दिया गया है। अध्ययन में ज्ञान के साथ विभिन्न कलाओं का समावेश होने से युवा शिक्षा के साथ-साथ अपनी विशिष्ट कौशलों को विकसित कर रोजगार भी प्राप्त कर सकते हैं। युवाओं ने कड़ी मेहनत से मनचाही डिग्री प्राप्त की है वह प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत के स्वप्न को साकार करने में सहयोगी बनें तथा माता-पिता और गुरुजनों के जीवन में सहायक बनें।

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