नयी दिल्ली , नवंबर 28 -- उच्चतम न्यायालय ने चेक बाउंस मामले में निचली अदालत के आदेश को पलटते हुए दोषी ठहराई गई महिला की अंतरिम जमानत की याचिका को मंजूरी दे दी।

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए निचली और उच्च न्यायालय की उसे राहत नहीं देने की गंभीर प्रक्रियात्मक अनियमितताओं की ओर इशारा किया और कहा कि बीमारियों से पीड़ित एक महिला को तब तक जेल में नहीं रखा जा सकता जब तक उसकी अपील पर फैसला नहीं हो जाता।

यह मामला याचिकाकर्ता की दिवंगत मां के दो चेकों के बाउंस होने की शिकायत का है। इन चेकों की राशि 7,00,000 रुपये और 5,00,240 रुपये थी। इस मामले में याचिकाकर्ता और उसकी मां दोनों को दोषी ठहराया गया था। इस दोषसिद्धि के खिलाफ याचिकाकर्ता की अपील सत्र न्यायालय के समक्ष लंबित है। उसकी सज़ा को निलंबित कर दिया गया था और 10 अक्टूबर, 2017 को जमानत दी गई थी। मामले में कई वकीलों के बदलने के बाद अपीलीय न्यायालय ने उसकी जमानत रद्द कर दी और एक गैर-जमानती वारंट जारी किया तथा उसकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था।

शीर्ष न्यायालय ने हालांकि वकील के बार-बार बदलाव पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त की, लेकिन कहा कि इस तरह का आचरण अपीलीय न्यायालय के कठोर दृष्टिकोण को उचित नहीं ठहराता। पीठ ने याचिकाकर्ता की मां का मृत्यु प्रमाण पत्र स्वीकार करने से इनकार करने और इसके बजाय स्थानीय थाना प्रभारी द्वारा सत्यापन का निर्देश देने के लिए भी अपीलीय न्यायालय की आलोचना की।

न्यायालय ने रिकॉर्ड किया कि याचिकाकर्ता, दाद से पीड़ित थी, और उसके मामले को गत चार सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया गया था। लेकिन अगली तारीख पर, उसे पता चला कि उसकी जमानत पहले ही रद्द कर दी गई थी और एक गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया गया। गत 20 सितंबर को आत्मसमर्पण करने के बाद, याचिकाकर्ता ने जमानत के लिए आवेदन किया, लेकिन अपीलीय न्यायालय ने न तो आवेदन पर फैसला किया और न ही अंतरिम राहत दी। इसके बजाय, उसने उसे हिरासत में ले लिया और मामले को 23 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया, जिसके बाद अंततः उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई। इससे व्यथित होकर उसने उच्च न्यायालय का रुख किया। समय की कमी के कारण उच्च न्यायालय मामले को सूचीबद्ध नहीं कर पाया, जिससे वह हिरासत में ही रही।

शीर्ष न्यायालय ने उसकी चिकित्सा स्थिति, उसकी अपील की लंबे समय तक चलने और सज़ा के पूर्व निलंबन पर विचार करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने उसे अंतरिम जमानत का हकदार माना। न्यायालय ने जिला जेल, फरीदाबाद के अधीक्षक को निर्देश दिया कि वह एक लाख रुपये के बांड पर उसे तुरंत रिहा कर दें। रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि वह तत्काल जेल अधिकारियों को आदेश की सूचना दे और 29 नवंबर, 2025 को शाम चार बजे तक अनुपालन सुनिश्चित करे। मामले की सुनवाई तीन सप्ताह के बाद होगी।

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