अमृतसर , दिसंबर 24 -- साहिबज़ादों के शहीदी दिवस को 'बाल दिवस' के रूप में मनाये जाने को लेकर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और अकाली नेता मनजीत सिंह जी.के. द्वारा स्वयं तथा शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की भूमिका संबंधी दिये गये बयानों के संदर्भ में उत्पन्न चर्चा तथा भाजपा प्रवक्ता प्रीतपाल सिंह बलियावाला के किये गये खुलासों के जवाब में दी गयी कानूनी कार्रवाई की धमकी पर बुधवार को पंजाब भाजपा के प्रवक्ता प्रो. सरचंद सिंह ख्याला ने दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम से संबंधित अख़बारी रिपोर्टें जारी कर तथ्यात्मक जानकारी जनता के समक्ष रखी है।
प्रो ख्याला ने श्री बादल को भी अपनी भूमिका स्पष्ट करने की चुनौती दी। उन्होंने कहा कि मनजीत सिंह जी.के. एक परिपक्व धार्मिक एवं राजनीतिक नेता हैं, लेकिन श्री बादल की संगत का प्रभाव उन पर भी पड़ा है, जिसके कारण वे अपने ही किये से मुकरने की प्रवृत्ति अपनाते दिख रहे हैं। उन्होंने बताया कि 16 जनवरी 2018 को दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी द्वारा नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में साहिबज़ादों की अलौकिक शहादत को समर्पित एक राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया था। उस समय मनजीत सिंह जी.के. दिल्ली कमेटी के अध्यक्ष थे और इस सेमिनार में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष एवं तत्कालीन पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल तथा तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि इस राष्ट्रीय सेमिनार की मीडिया कवरेज 17 जनवरी 2018 को 'द ट्रिब्यून' में पत्रकार सईद अली अहमद द्वारा लीड रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने साहिबज़ादों के शहीदी दिवस को 'बाल दिवस' के रूप में मनाने की सिफ़ारिश सरकार से करने का निर्णय लिया था। मीडिया कवरेज में 'बाल दिवस' की वकालत को प्रमुखता दी गयी, लेकिन न तो उस समय और न ही बाद में कभी सरदार जी.के. या दिल्ली कमेटी ने इसका खंडन किया। उन्होंने कहा कि उस समय की अख़बारी रिपोर्टों और प्रकाशित तस्वीरों से यह साफ़ दिखाई देता है कि मनजीत सिंह जी.के. न केवल कार्यक्रम में मौजूद थे, बल्कि वे सुखबीर सिंह बादल के साथ केंद्रीय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी को सम्मानित करते हुए भी नज़र आ रहे हैं।
प्रो. ख्याला ने साहिबज़ादों की शहादत को 'बाल' शब्द से जोड़ने पर उठ रही आपत्तियों का उत्तर सिख इतिहास और गुरबाणी के तथ्यों के माध्यम से दिया। उन्होंने कहा कि 'बाल' शब्द सिख परंपरा में अपमान नहीं, बल्कि पवित्रता, निर्मलता और आध्यात्मिक महानता का प्रतीक है। सतगुरु श्री गुरु हरिकृष्ण जी को 'बाला प्रीतम' कहा गया है तथा श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की बाल अवस्था को भी 'बाला प्रीतम' और 'बाल गोबिंद राय' के रूप में विशेष सम्मान प्राप्त है।उन्होंने कहा कि भाई दाना सिंह की रचना कथा गुरु के सुतन की में छोटे साहिबज़ादों के लिए 'बाल' शब्द स्नेह और श्रद्धा के साथ प्रयुक्त हुआ है। भाई गुरदास जी की वारों और श्री गुरु नानक देव जी की बाणी सिद्ध गोष्ट में भी 'बाला' शब्द का उल्लेख मिलता है।
प्रो. ख्याला ने कहा कि तख़्त श्री हरिमंदर जी पटना साहिब में जब तत्कालीन अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' मनाने के ऐलान को संगतों के साथ साझा किया गया, तो वहां जयकारों और उत्साह के साथ उसका स्वागत किया गया। उन्होंने कहा कि साहिबज़ादों की कुर्बानी राजनीति से ऊपर उठकर मानवता, धर्म और न्याय की रक्षा के लिए दी गयी अमर शहादत है। 'वीर बाल दिवस' साहिबज़ादों की अलौकिक शहादत, साहस और न्याय के लिए दिए गए बलिदान को देश और दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाने का सम्मानजनक माध्यम है। यह शहादत, गौरव और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है।उन्होंने कहा कि गुरु साहिबान, साहिबज़ादों और सिखों की देश व समाज के प्रति भूमिका को वैश्विक स्तर पर सामने लाना प्रधानमंत्री मोदी के सिख धर्म के प्रति गहरे सम्मान का प्रमाण है। यह राजनीति नहीं, बल्कि शहादत को नमन और राष्ट्रीय सम्मान है। साहिबज़ादों का सम्मान पहले भी था और आगे भी रहेगा, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी से पहले तीन सदियों में किसी भी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कदम नहीं उठाया, जो भी व्यक्ति पंथ के हित में कार्य करता है, उसकी सराहना और हौसला-अफ़ज़ाई होनी चाहिए।
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