रांची , अक्टूबर 01 -- झारखंड की पूर्व सांसद एवं भाजपा प्रदेश प्रवक्ता गीता कोड़ा ने सारंडा जंगल और आदिवासी-मूलवासी समुदाय के हकों को लेकर राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की है।

श्रीमती कोड़ा ने आज राज्य सरकार की गतिविधियों को भ्रामक और दिखावटी करार देते हुए कहा कि मंत्री समूह में आदिवासी समुदाय के दो मंत्री होने के बावजूद जनता को गुमराह कर सत्ता बचाने की कोशिश की जा रही है।

श्रीमती कोड़ा ने कहा कि यदि झामुमो के मंत्री, विधायक और स्थानीय सांसद वास्तव में सारंडा और आदिवासी हितों के प्रति संवेदनशील होते, तो उन्होंने समय रहते ठोस कदम उठाए होते।

ज्ञातव्य है कि वर्षों तक सारंडा जंगल और आदिवासी अधिकारों के मसले पर सरकार, मंत्री और स्थानीय प्रतिनिधि चुप्पी साधे रहे। अब जब मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच चुका है, तब अचानक जनसभा और जनसुनवाई कर जनता को भ्रमित करना गलत है।

श्रीमती कोड़ा ने सरकार के ऐसे रवैये को सत्ता और कुर्सी बचाने का तर्क बताया न कि आदिवासी अधिकारों की रक्षा का प्रयास।

श्रीमती कोड़ा ने स्पष्ट किया कि लाखों आदिवासी-मूलवासी लोगों के जल, जंगल, जमीन और पारंपरिक अधिकार खतरे में हैं लेकिन जनप्रतिनिधियों ने वक्त रहते आवाज़ नहीं उठाई। सारंडा जंगल के अस्तित्व और आदिवासी-मूलवासी अधिकारों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। वर्षों की चुप्पी के बाद अब सरकार अचानक दौरे-सभाएं कर रही है, जो जनता को गुमराह करने के अलावा कुछ नहीं।

श्रीमती कोड़ा ने सरकार से सवाल किए कि संकट के इस वक्त वे कहां थे, अदालत में सुनवाई से ठीक पहले हो रहे दौरे को क्या जनहित की रक्षा कहा जाएगा, और क्या यह जनता के साथ विश्वासघात नहीं है। उन्होंने कहा, "यदि समय रहते कदम उठाए जाते, तो आज सारंडा और इसके निवासियों का भविष्य संकट में नहीं होता। बाकि अब सारंडा की जनता सरकार की सच्चाई समझ चुकी है और इस प्रकार की नौटंकी से गुमराह नहीं होगी। भाजपा हमेशा उनकी आवाज़ के साथ मजबूती से खड़ी रहेगी।"श्रीमती कोड़ा ने साफ़ किया कि वह सारंडा और आदिवासी-मूलवासी समुदाय के संघर्ष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है और उनकी सुरक्षा, अधिकारों की रक्षा के लिए लगातार आवाज़ उठाएगी।

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