लखनऊ , अक्टूबर 3 -- रामपुर रज़ा लाइब्रेरी एवं संग्रहालय, रामपुर की अध्यक्षा आनंदीबेन पटेल ने पुस्तकालय के 251वें स्थापना वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित द्वितीय रामपुर रज़ा पुस्तकालय महोत्सव का राजभवन, लखनऊ से शुक्रवार को वर्चुअल उद्घाटन किया।

इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि रामपुर रज़ा पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ ग्रंथ, पांडुलिपियाँ और कलात्मक कृतियाँ केवल ज्ञान की निधि नहीं हैं, बल्कि हमारी अस्मिता की पहचान हैं। "धरोहरें केवल स्मृति नहीं, बल्कि प्रेरणा होती हैं। ये हमें याद दिलाती हैं कि सभ्यता की जड़ों से जुड़े बिना प्रगति का वृक्ष कभी फल-फूल नहीं सकता,"।

राज्यपाल ने पुस्तकालयों को संस्कृति का मंदिर बताते हुए कहा " वे समाज के मौलिक स्तंभ हैं, जो ज्ञान, शिक्षा और सृजनशीलता का पोषण करते हैं। उन्होंने कहा कि "प्रत्येक पुस्तकालय अतीत और भविष्य के बीच एक सेतु है। बच्चों के लिए यह ज्ञान की पहली सीढ़ी है, युवाओं के लिए सपनों को पंख देने का साधन और वृद्धों के लिए जीवनानुभवों को पुनः जीने का अवसर है।"भारत की पांडुलिपि परंपरा का उल्लेख करते हुए राज्यपाल ने कहा कि ऋषियों-मुनियों और आचार्यों ने अपने चिंतन और साधना से अमूल्य पांडुलिपियाँ रचीं, जिनमें केवल शब्द नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की दिशा और दृष्टि समाहित है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार के 'ज्ञान भारतम् मिशन' के अंतर्गत इस विरासत का संरक्षण और डिजिटल प्रलेखन किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों को राष्ट्रीय डिजिटल डिपॉजिटरी में सुरक्षित किया जाएगा।

राज्यपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई दिल्ली में आयोजित ज्ञान भारतम् पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को भारतीय साहित्यिक और वैज्ञानिक चेतना का विराट उत्सव बताया। उन्होंने कहा कि आज भारत के पास विश्व का सबसे बड़ा पांडुलिपि संग्रह है, जिसमें केवल धर्म और दर्शन ही नहीं, बल्कि खगोल, गणित, चिकित्सा, रसायन, राजनीति, वास्तुकला और कृषि विज्ञान जैसी विधाओं का भंडार है।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित