जोधपुर , दिसंबर 21 -- केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा है कि भारत की सनातन संस्कृति हजारों वर्षों से निरंतर प्रवाह में बनी हुई है और इसके संरक्षण में ब्राह्मण समाज की भूमिका ऐतिहासिक और निर्णायक रही है।
श्री शेखावत रविवार को अंतरराष्ट्रीय सारस्वत महासम्मेलन के समापन समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सारस्वत केवल एक उपनाम नहीं है बल्कि यह सरस्वती नदी से जुड़ी एक महान सभ्यतागत परंपरा का प्रतीक है। सरस्वती नदी भले ही भौतिक रूप से लुप्त हो गई हो, लेकिन उसकी ज्ञान-धारा आज भी भारतीय संस्कारों और सामाजिक चेतना में प्रवाहित हो रही है। उन्होंने कहा कि सरस्वती के तट पर विकसित सारस्वत ब्राह्मण समाज ने ज्ञान को जीवन का आधार बनाते हुए शिक्षा, प्रशासन, सामाजिक संगठन और व्यापार जैसे क्षेत्रों में देशभर में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उन्होंने कहा कि जब सरस्वती नदी के लुप्त होने के बाद सभ्यतागत विस्थापन हुआ, तब सारस्वत ब्राह्मणों ने न तो हथियार उठाए और न ही सत्ता की मांग की। उन्होंने ज्ञान का दीपक थामकर देश के विभिन्न हिस्सों में संस्कार, शिक्षा और व्यवस्था को मजबूत किया। उत्तर भारत से लेकर पश्चिमी भारत, कोंकण, गोवा और दक्षिण भारत तक, जहां-जहां सारस्वत समाज पहुंचा, वहां उसने सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना को सुदृढ़ किया।
उन्होंने कहा कि आज भारत सांस्कृतिक पुनर्जागरण के दौर से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश अपनी विरासत के संरक्षण के साथ विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ऐसे समय में समाज की जिम्मेदारी है कि वह अपनी ऐतिहासिक भूमिका को स्मरण करे और आने वाली पीढ़ियों को संस्कार, संतुलन और राष्ट्रबोध से जोड़े। उन्होंने कहा कि संसद और समाज दोनों ही विमर्श के मंच हैं जहां संवाद और विचार-विमर्श होना चाहिए। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़कर राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाएं।
श्री शेखावत ने कहा कि जिस प्रकार आज भारत एक बार फिर संस्कृति के पुनर्जागरण के दौर से गुजर रहा है उसी तरह हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः सजीव करने के लिए संकल्पबद्ध होकर आगे बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरस्वती नदी को पुनः प्रवाहमान बनाने के लिए कार्य करने और उसकी रूपरेखा तैयार करने का सौभाग्य उन्हें लगभग पांच वर्षों तक मिला। उन्होंने कहा कि वह पूरे विश्वास के साथ यह कह सकते है कि आने वाले कुछ वर्षों में एवं कुछ दशकों में सरस्वती नदी पुनः प्रवाहमान होगी और जिस दिन सरस्वती पुनः प्रवाहमान होगी, उस दिन भारत का सांस्कृतिक सूर्य एक बार फिर उदित होकर पूरे विश्व को आलोकित करेगा।
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