वीडा लाइफसाइंसेज एवं साइटिवाने एचसीपी के लिए किया नया सेंटर शुरूअहमदाबाद , नवंबर 28 -- डानाहर ग्रुप की कंपनी और लाइफ साइंसेज सेक्टर की लीडर साइटिवा ने ग्लोबल कॉन्ट्रैक्ट रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन वीडा लाइफसाइंसेज (वीडा क्लिनिकल रिसर्च लिमिटेड) के साथ मिलकर बेंगलुरु में एक खास हॉस्ट सेल प्रोटीन (एचसीपी) सर्विसेज सेंटर शुरू किया है।
वीडा लाइफसाइंसेज के ग्रुप सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ महेश भालगत ने शुक्रवार को यहां जारी बयान में कहा, "हम साइटिवा के साथ पार्टनरशिप करके बहुत खुश हैं। इससे बायोलॉजिक्स बनाने वाली कंपनियों को गहरा साइंटिफिक इनसाइट मिलेगा और उनके प्रोडक्ट्स का कैरेक्टराइजेशन और मजबूत होगा। एनालिटिकल डेटा दवा को अप्रूवल मिलने में सबसे अहम होता है। हमारी यह साझेदारी बायोसिमिलर्स के रेगुलेटरी अप्रूवल को और मजबूत आधार देगी।"उन्होंने कहा कि यह सेंटर खास तौर पर इंप्योरिटी एनालिसिस और ण्चसीपी टेस्टिंग पर फोकस करेगा। यह सेंटर बायोफार्मास्युटिकल कंपनियों को नयी बायोलॉजिक्स दवाओं और बायोसिमिलर्स के डेवलपमेंट में रिस्क कम करने और रेगुलेटरी स्टैंडर्ड्स पूरा करने में मदद करेगा। साइटिवा की टेक्नोलॉजी से लैस और वीडा की फैसिलिटी के अंदर बना ये नया सेंटर बायोफार्मा मैन्युफैक्चरर्स, रिसर्चर्स और एकेडमिक संस्थानों के लिए एक पूरा एनालिटिकल हब बनेगा। यहां मल्टीपल एट्रीब्यूट डीआईजीई (डिफरेंशियल जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस) टेक्निक का इस्तेमाल होगा, जिससे एनालिसिस का काम तेज, सटीक और आसान हो जाएगा। सेंटर रेगुलेटरी अप्रूवल के लिए तैयार डेटा देगा।
डॉ महेश भालगत ने कहा कि खासकर रिकॉम्बिनेंट प्रोटीन्स, थेरेप्यूटिक मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज, वैक्सीन्स आदि में मौजूद इंप्योरिटी के लिए। मुख्य सर्विसेज में एचसीपी कवरेज, कैरेक्टराइजेशन और क्वांटिफिकेशन असेज शामिल है। ये टेस्ट बहुत जरूरी हैं क्योंकि थोड़ी-सी भी एचसीपी इंप्योरिटी दवा की क्वालिटी खराब कर सकती है और मरीजों को नुकसान पहुंचा सकती है। साइटिवा के 2025 बायोफार्मा इंडेक्स में भी यही बात सामने आई है कि आजकल एनालिटिकल और डिजिटल टूल्स की डिमांड बहुत तेजी से बढ़ रही है। इससे प्रोडक्शन स्केल-अप आसान होता है, बैच फेल होने का खतरा कम होता है और जरूरी दवाएं मरीजों तक जल्दी पहुंचती हैं।
साइटिवा के साउथ एशिया जनरल मैनेजर मनोज कुमार आर पणिक्कर ने कहा, " ये नया सेंटर इनोवेशन को तेज करने और नयी थेरेपी को आगे बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। जब साइंस, इंडस्ट्री और मकसद एक साथ आते हैं, तो बायोफार्मा में जो संभव है, ये सेंटर उसकी मिसाल है।"बायोलॉजिक्स दवाएं बनाने के लिए जिन कोशिकाओं (सेल्स) का इस्तेमाल होता है, उन कोशिकाओं से निकलने वाले प्रोटीन ही एचसीपी कहलाते हैं। ये दवा में प्रोसेस इंप्योरिटी की तरह रह जाते हैं। बहुत कम मात्रा में भी ये जहरीले हो सकते हैं, इम्यून रिएक्शन करा सकते हैं या दवा को अस्थिर कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इस सेंटर में ईएलआईएसए और मास स्पेक्ट्रोमेट्री जैसी एडवांस्ड तकनीकों का इस्तेमाल होगा, ताकि कंपनियां अपने प्रोसेस की क्वालिटी चेक कर सकें। भारत की बायो-इकॉनमी 2030 तक 300 बिलियन डॉलर की होने वाली है। ऐसे इनिशिएटिव्स भारत को बायोलॉजिक्स रिसर्च, मैन्युफैक्चरिंग और इनोवेशन का भरोसेमंद हब बनाने में बड़ी भूमिका निभाएंगे।
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