पटना , अक्टूबर 12 -- पूर्व केन्द्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक दिवंगतराम विलास पासवान की पार्टी का अपनी स्थापना के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन लगातार गिरता रहा और वर्ष 2020 में पार्टी महज एक सीट पर सिमट गई थी ।
राम विलास पासवान ने जनता दल से अलग होकर लोजपा की स्थापना 28 नवंबर 2000 को की थी। इससे ठीक पहले वर्ष 2000 का विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ था। फरवरी 2005 में पहली बार लोजपा ने बिहार विधानसभा के चुनावी दंगल में हिस्सा लिया। इस चुनाव में लोजपा ने 178 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 29 सीटे पर जीतीं। यही लोजपा का बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे बेहतर प्रदर्शन था। इस चुनाव में किसी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। सरकार बनाने की जद्दोजहद शुरू हुई, तो नीतीश कुमार ने एक बार फिर रामविलास पासवान को जोड़ने की कोशिश की, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुए। रामविलास पासवान ने किसी मुस्लिम को मुख्यमंत्री बनाने की मांग रखकर पूरे सियासी समीकरण को बदल दिया, हालांकि कोई इसके लिए तैयार नहीं हुआ। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।अक्टूबर-नवंबर 2005 में फिर से चुनाव कराए गए।
अक्टूबर-नवंबर के चुनाव में लोजपा ने 203 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से वह सिर्फ 10 सीटें ही जीत सकी। इस चुनाव में श्री पासवान ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के साथ कुछ सीटों पर समझौते के तहत चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में श्री पासवान की पार्टी को 19 सीटों का भारी-भरकम नुकसान हुआ।मात्र सात महीने पहले बिहार की सत्ता की चाभी रखने वाले पासवान के सारे अरमान इस चुनाव में आंसुओं में बह गए। श्री पासवान को उम्मीद थी कि फरवरी में जो उन्होंने मुस्लिम मुख्यमंत्री का दांव चला था, उसके बदले में उन्हें मुसलमान वोटों का कुछ हिस्सा तो जरूर हासिल होगा, लेकिन बात नहीं बन सकी।वहीं, जनता दल यूनाईटेड (जदयू) -भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला और नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बने।बिहार से तब राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के 15 वर्षों के शासन काल की विदाई हो गई थी।
2010 का बिहार विधान सभा चुनाव लोजपा ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ मिलकर लड़ा था। राजद ने 168 जबकि लोजपा ने 75 सीटों पर चुनाव लड़ा। राजद को 22 सीटें मिली जबकि लोजपा केवल तीन सीटें जीत पायी। वर्ष 2015 का विधानसभा चुनाव लोजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ मिलकर लड़ा। इस चुनाव में राजग में सीटों में तालमेल के तहत लोजपा को 42 सीटें मिली जिसमें उसको केवल दो सीटों पर जीत मिली।लोजपा के लिये यह चुनाव शर्मनाक साबित हुआ। लोजपा के हारनेवाले सबसे प्रमुख उम्मीदवारों में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं अलौली के उम्मीदवार पशुपति कुमार पारस, श्री पासवान के दो दामाद अनिल कुमार साधु (बोचहां) से ,धनंजय कुमार उर्फ मृणाल पासवान (कुश्वेश्वर स्थान) से और भतीजा प्रिंस राज (कल्याणपुर सुरक्षित) से हार गये। लोजपा ने मात्र दो सीट पर जीत हासिल की, जिसमें गोविदगंज से राजू तिवारी और लालगंज विधानसभा क्षेत्र से राज कुमार साह शामिल हैं।
अक्टूबर 2020 में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान निधन हो गया। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे के सवाल पर, चिराग पासवान की अध्यक्षता में लोजपा ने राजग का दामन छोड़ दिया।वर्ष 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव लोजपा ने 135 सीटों पर अकेले अपने दम पर लड़ा। लोजपा ने जदयू की सभी 115 सीट के साथ राजग में शामिल भाजपा ,विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) की कुछ सीट पर भी उम्मीदवार उतारे थे। चिराग की पार्टी लोजपा ने उस समय नारा दिया ,मोदी जी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं।. जाहिर है कि यह नीतीश कुमार को नुकसान पहुंचाने के लिए चिराग ने यह फैसला लिया था। इतिहास साक्षी है कि जब भी चुनाव से पहले किसी कद्दावर नेता का निधन हुआ है, तो उसका फायदा उसकी पार्टी को सहानुभूति के तौर पर मिलाता रहा है, लेकिन श्री पासवान के निधन के बाद चिराग को प्रदेश की जनता से सहानूभूति नहीं मिली और लोजपा को केवल एक सीट मिली। मटिहानी विधानसभा सीट से लोजपा उम्मीदवार राजकुमार सिंह ने जदयू उम्मीदवार नरेंद्र कुमार सिंह उर्फ बोगो सिंह को मात दी। हालांकि बाद में राजकुमार सिंह जदयू में शामिल हो गये। भले ही चिराग इस चुनाव में जदयू को कमजोर करने में सफल रहे, लेकिन इसका नुकसान लोजपा को भी झेलना पड़ा। चिराग यदि राजग में रहकर चुनाव लड़ते तो उन्हें जरूर फायदा मिलता।
इस बीच राम विलास पासवान के निधन के बाद उनके बेटे चिराग पासवान और भाई पशुपति कुमार पारस में मतभेद बढ़ने लगा।चिराग पासवान औऱ पशुपति पारस में पार्टी के नेतृत्व को लेकर खींचतान थी, रामविलास के निधन के बाद यह दरार और बढ़ गयी।पशुपति कुमार पारस ने चिराग पासवान को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटा दिया। सूरजभान सिंह को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। टूट के बाद 2021 में लोजपा दो पार्टियों लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी में बंट गई।
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