जयपुर , अक्टूबर 12 -- राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा एवं नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने आरोप लगाते हुए कहा है कि वर्ष 2014 के बाद से सूचना का अधिकार (आरटीआई) लगातार कमज़ोर की जा रही है, जिससे देश की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक ढांचे पर आघात हुआ है।
श्री डोटासरा एवं श्री जूली ने आरटीआई एक्ट लागू होने के 20 वर्ष पूर्ण होने पर रविवार को यहां मीडिया को दिए अपने बयान में यह बात कही। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 के संशोधनों ने स्वतंत्रता को कमज़ोर किया और कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ाया। 2019 के संशोधन ने सूचना आयोगों की स्वायत्तता को कमज़ोर कर दिया। 2023 - डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम ने आरटीआई की धारा 8 (1) (र) में संशोधन किया, जिससे "व्यक्तिगत जानकारी" की परिभाषा का दायरा बहुत बढ़ा दिया गया। पहले, "व्यक्तिगत जानकारी "जनहित में होने पर उजागर की जा सकती थी, लेकिन अब संशोधित प्रावधान कहता है- "कोई भी ऐसी जानकारी जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित हो, प्रकट नहीं की जाएगी।" इससे सार्वजनिक कर्तव्यों या सार्वजनिक धन के उपयोग से संबंधित जानकारी का खुलासा भी रोका जा सकता है, जो आरटीआई के पारदर्शिता सिद्धांत के विरुद्ध है।
उन्होंने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग आज अपनी अब तक की सबसे कमज़ोर स्थिति में है- 11 स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल दो आयुक्त कार्यरत हैं और सितंबर 2025 के बाद मुख्य आयुक्त का पद भी रिक्त है। इस तरह की स्थिति यूपीए शासन के दौरान कभी नहीं रही। जून 2024 तक देशभर के 29 आयोगों में लगभग 4,05,000 अपीलें और शिकायतें लंबित थी जो 2019 की तुलना में लगभग दोगुनी हैं। नवंबर 2024 तक केवल केंद्रीय सूचना आयोग में ही लगभग 23 हजार लंबित मामले हैं।
उन्होंने कहा कि जब आरटीआई के माध्यम से प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों पर हुए करोड़ों रुपये के खर्च, कोविड महामारी के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की वास्तविक संख्या या पीएम केयर्स फण्ड के उपयोग से जुड़ी जानकारी मांगी गई, तो कोई जवाब नहीं दिया गया। इलेक्टोरल बॉण्ड्स मामलें में एसबीआई ने आरटीआई के तहत् डेटा देने से इनकार किया और मामला उच्चत्तम न्यायालय तक पहुंचा। केवल तब जाकर राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदों का डेटा सार्वजनिक हुआ।
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