नैनीताल, 07 अक्टूबर (वार्ता) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को वन गुुर्जरों के मामले में अपनी संजीदगी दिखाते हुए सरकारी कार्यशैली पर बेहद सख्त टिप्पणी की और कहा कि गरीब की झोपड़ी सबको दिखाई देती है लेकिन सड़क किनारे बना अवैध रिसोर्ट किसी को नहीं दिखाई देता है। उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।
अदालत ने 23 वन गुर्जरों के मामले में मंगलवार को सुनवाई करते हुए यह अहम टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने इन मामलों को फिलहाल वन गुर्जरों के पुराने मामलों से संबद्ध कर दिया है। इन मामले में अब नियमित बेंच सुनवाई करेगी।
दरअसल हल्द्वानी वन प्रभाग और तराई मध्य वन प्रभाग निवासी अली जान और ऊमरूद्दीन समेत 23 वन गुर्जरों ने वन अधिकार अधिनियम के तहत अपना दावा प्रस्तुत करने के साथ ही खेती करने की मांग को लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। आज इन मामलों में सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि वह वर्षों से हल्द्वानी के चोरगलिया और रामनगर वन प्रभाग में निवास करते आ रहे हैं। वन विभाग अतिक्रमण के नाम पर उन्हें खेती करने से रोक रहा है। यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
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