नयी दिल्ली , दिसंबर 19 -- राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की एक विशेष अदालत ने जम्मू-कश्मीर के दो निवासियों को 2016 में पाकिस्तान के प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों को सहायता देने के आरोप में दोषी पाया है। ये आतंकवादी देश भर में हमले करने के इरादे से भारत में घुसे थे।

ज़हूर अहमद पीर और नज़ीर अहमद पीर को आतंकवादियों को ठिकाना देने और उनकी मदद करने के लिये गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी पाया गया है।

अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा, "आतंकवादियों की मदद करने वाले नागरिक आतंकवाद को ताकतवर बनाते हैं। अगर कोई शख्स आतंकवादियों के संपर्क में आये तो उसे सरकारी सुरक्षा एजेंसियों को सूचित करना चाहिये। इस मामले के आरोपी ऐसा करने में असफल रहे और इसलिये मामले में फंसे।"यह मामला पाकिस्तानी नागरिक और प्रशिक्षित लश्कर आतंकवादी बहादुर अली उर्फ सैफ़ुल्लाह मंसूर से जुड़ा हुआ है। बहादुर अपने दो सहयोगियों के साथ जून 2016 में अवैध रूप से भारत में घुसा था। अपने सहयोगियों से बिछड़ने के बाद बहादुर को पाकिस्तान में मौजूद उसके हैंडलर ने कहा था कि मदद के लिये 'डॉक्टर' कोड नाम वाले स्थानीय संचालक से मिले।

जांच-पड़ताल के बाद पता चला कि ज़हूर और नज़ीर ही बहादुर के स्थानीय समर्थक थे। वे नियमित रूप से उससे हंदवाड़ा के यहामा मुकाम गांव में एक सरकारी स्कूल के करीब मिलते थे। वे जुलाई 2016 में बहादुर की गिरफ्तारी तक उसे खाना, करीब के जंगल में छिपने का ठिकाना और दूसरी ज़रूरी चीज़ें देते रहे।

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