शिमला , दिसंबर 19 -- हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने ऊर्जा विकास विभाग (हिमऊर्जा) के एक वरिष्ठ परियोजना अधिकारी के तबादले को रद्द करते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री कार्यालय ने नीति के खिलाफ जाकर तबादले का गैर-आधिकारिक आदेश जारी किया था।
न्यायालय ने उस तरीके की कड़ी निंदा की है, जिसमें एक निजी ठेकेदार के कहने पर मुख्यमंत्री कार्यालय से निकले एक गैर-आधिकारिक नोट के आधार पर तबादले का आदेश जारी किया गया था। न्यायालय ने कहा कि ऐसे काम स्थापित सर्विस कानूनों की जड़ पर हमला करते हैं और संवैधानिक अदालतों द्वारा बार-बार तय किये गये कानून का उल्लंघन करते हैं।
न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने रमेश कुमार ठाकुर द्वारा दायर रिट याचिका को मंजूर करते हुए कहा कि 15 नवंबर, 2025 का आदेश जिसमें अधिकारी का तबादला धर्मशाला से चंबा किया गया था, अवैध, मनमाना और कानून की नज़र में गलत था।
न्यायालय ने कहा कि तबादला सिर्फ मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी एक नोट के आधार पर किया गया था, जो खुद एक सरकारी ठेकेदार कंपनी के मालिक द्वारा लिखे गये एक पत्र के कारण हुआ था। ठेकेदार की सोलर ऊर्जा परियोजना को पूरा करने में देरी को लेकर विभाग के साथ विवाद चल रहा था।
न्यायालय ने साफ तौर पर कहा कि किसी भी गैर-चुने हुए प्रतिनिधि या निजी व्यक्ति को आदेश नोट के ज़रिये तबादले का आदेश जारी करने या प्रभावित करने का कोई अधिकार नहीं है। यहां तक कि चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा की गयी शिकायतों को भी कोई कार्रवाई करने से पहले प्रशासनिक विभाग को उनकी पुष्टि करनी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि ऐसी सिफारिशों पर बिना सोचे-समझे काम करना प्रशासनिक ज़िम्मेदारी से भागना है।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता की मेडिकल स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देते हुए कहा कि अधिकारी जानलेवा बीमारियों से पीड़ित था, जिसमें पहले पैरालिसिस का हमला और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं शामिल थीं। इससे उसका चंबा जैसे दूर-दराज के जिले में तबादला खास तौर पर कठोर और गलत था। न्यायालय ने पाया कि कार्यकाल, मेडिकल कारणों और मूल स्थान से दूरी के संबंध में राज्य की तबादला नीति का उल्लंघन हुआ था।
न्यायालय ने तबादले के आदेश को रद्द करते हुए सरकार को कानून, जनहित और प्रशासनिक ज़रूरत के अनुसार ही तबादलना करने की छूट दी, न कि बाहरी प्रभाव में।
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