बिलासपुर, सितंबर 30 -- छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्यभर के मुक्तिधामों और श्मशान घाटों की बदहाली पर गंभीर चिंता जताई है। न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को न केवल सम्मानजनक जीवन बल्कि सम्मानजनक मृत्यु और दाह संस्कार का अधिकार भी देता है। शव को वस्तु की तरह अमानवीय ढंग से निपटाना असंवैधानिक और अनुचित है।

मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा हाल ही में बिलासपुर जिले के रहंगी ग्राम पंचायत स्थित मुक्तिधाम में एक अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे। वहाँ की दयनीय स्थिति देखकर उन्होंने स्वतः संज्ञान लिया और जनहित याचिका दर्ज करने के निर्देश दिए। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश सिन्हा और न्यायाधीश विभु दत्त गुरु की युगलपीठ में हुई।

निरीक्षण में पाया गया कि मुक्तिधाम में न चारदीवारी थी, न पहचान चिन्ह। अंतिम संस्कार स्थल तक पहुँच मार्ग खाइयों और बरसाती पानी से भरा था। पूरे परिसर में गंदगी, पॉलीथिन, शराब की बोतलें और कचरे का ढेर था। न रोशनी की व्यवस्था थी, न शेड या बैठने की सुविधा। शौचालय, कूड़ेदान और देखरेख करने वाले कर्मियों का भी अभाव था।

हाईकोर्ट ने पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग के सचिव, छत्तीसगढ़ सरकार और जिला कलेक्टर बिलासपुर को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। साथ ही राज्य सरकार से श्मशान घाटों और मुक्तिधामों की बेहतरी के लिए ठोस रोडमैप या विजन प्रस्तुत करने को कहा गया है।

न्यायालय ने कहा कि दिवंगत व्यक्ति के साथ परिवार की भावनाएँ जुड़ी होती हैं, और हर परिजन अपने प्रियजन को सम्मानजनक माहौल में विदाई देना चाहता है। यह सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर तुरंत कदम उठाएँ। मामले की अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को होगी।

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