नैनीताल , नवंबर 28 -- उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में अधिवास के आधार पर राज्य की महिलाओं को मिलने वाले 30 प्रतिशत आरक्षण के मामले में शुक्रवार को सुनवाई नहीं हो सकी। इस मामले में अब 12 दिसंबर की तिथि मुकर्रर है।

इस प्रकरण को उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त शिक्षक सत्यदेव त्यागी समेत छह अन्य लोगों की ओर से अलग अलग याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई है।

आज सरकार की ओर से कहा गया कि महिला आरक्षण से जुड़ा मामला शीर्ष अदालत में लंबित है। इसलिए 10 दिसंबर तक इस मामले पर सुनवाई टाल दी जाए। अदालत ने इसके बाद सुनवाई के लिए 12 दिसंबर की तिथि तय कर दी।

उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ताओं की ओर से उत्तराखंड सरकार द्वारा अधिनियमित उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) अधिनियम, 2022 के साथ ही राज्य की लोक सेवाओं में प्रदेश की महिलाओं को अधिवास के आधार पर मिलने वाले 30 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती दी गई है।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 16(3) के प्रावधानों के विरुद्ध है तथा उत्तराखंड विधानसभा इस अधिनियम को पारित करने के लिए सक्षम नहीं है।

आगे कहा कि अधिवास के आधार पर आरक्षण का लाभ केवल संसद द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है, राज्य विधानमंडल द्वारा नहीं। इस प्रकार का आरक्षण प्रदान करना राज्य का संकीर्ण दृष्टिकोण है। क्षेत्र और अधिवास-आधारित आरक्षण राष्ट्र के लिए उचित नहीं है। यह भी कहा गया कि राज्य को महिलाओं को आरक्षण प्रदान करने का अधिकार है लेकिन इसे उत्तराखंड की महिलाओं तक सीमित नहीं रखा जा सकता है। राज्य ने मनमाने ढंग से वर्ग के भीतर एक उपवर्ग बना दिया है, जिसकी भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(3) के तहत अनुमति नहीं है।

वहीं राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि उत्तराखंड विधानसभा इस अधिनियम को पारित करने में सक्षम है। आरक्षण का आधार अधिवास नहीं है। अन्य राज्यों ने भी आरक्षण दिया है। तेलंगाना सरकार की ओर से मेडिकल कॉलेज में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

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