नयी दिल्ली , दिसंबर 1 -- उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय की परिसीमन प्रक्रिया की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ता निखिल के. कोलेकर की याचिका खारिज कर दी। श्री कोलेकर ने अंतिम परिसीमन प्रस्तावकों मंजूरी देने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) द्वारा विभागीय आयुक्तों को शक्ति देने पर सवाल उठाया था।

न्यायालय ने कहा कि राज्य में लंबे समय से रुके हुए निकाय के चुनाव कराने में अब कोई और रुकावट नहीं आने दी जाएगी।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सुधांशु चौधरी ने कहा कि चुनाव क्षेत्र के बंटवारे को मंज़ूरी देने का अधिकार सिर्फ़ एसईसी के पास है। उन्होंने कहा कि सरकारी अधिकारियों को इस शक्ति का इस्तेमाल करने देना आयोग का अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ना है। इस मामले में दखल देने से इनकार करते हुए शीर्ष अदालत ने ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया गया था, हालांकि इसने बड़े संवैधानिक सवाल को खुला छोड़ दिया।

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हम ऐसी किसी भी याचिका पर सुनवाई नहीं करने जा रहे हैं जिससे देरी हो सकती है... यह चुनावों में देरी करने की एक चाल लगती है। चुनावों के आयोजन में अब और कोई रुकावट नहीं आ सकती।"गौरतलब है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय अपने 30 सितंबर के फैसले में ने कहा था कि परिसीमन का काम "संवैधानिक और कानूनी नियमों का इतना बड़ा उल्लंघन नहीं था" कि अनुच्छेद 226 के तहत दखल देने की ज़रूरत हो। इसने आर्टिकल 243O और 243जेडजी के तहत रोक पर भी भरोसा किया, जो परिसीमन मामलों के न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाते हैं, और 31 जनवरी तक चुनाव पूरे करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश पर ध्यान दिया।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित