, Dec. 23 -- फिल्म खानदान में नूरजहां पर फिल्माया गाना 'कौन सी बदली में मेरा चाँद है आजा' श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय भी हुआ। फिल्म खानदान की सफलता के बाद नूरजहाँ ने फिल्म के निर्देशक शौकत हुसैन से निकाह कर लिया। इसके बाद वे मुंबई आ गईं। इस बीच नूरजहाँ ने शौकत हुसैन की निर्देशित नौकर, जुगनू (1943) जैसी फिल्मों में अभिनय किया।नूरजहां अपनी आवाज में नित्य नए प्रयोग किया करती थीं। अपनी इन खूबियों की वजह से वे ठुमरी गायिकी की महारानी कहलाने लगीं। इस दौरान नूरजहाँ की दुहाई (1943), दोस्त (1944) और बड़ी माँ, विलेज गर्ल (1945) जैसी कामयाब फिल्में प्रदर्शित हुई। इन फिल्मों में उनकी आवाज का जादू श्रोताओं के सिर चढ़कर बोला। इस तरह नूरजहाँ मुंबइया फिल्म इंडस्ट्री में मल्लिका-ए-तरन्नुम कही जाने लगीं।
वर्ष 1945 में नूरजहां की एक और फिल्म जीनत भी प्रदर्शित हुई। इस फिल्म की एक कव्वाली आहें ना भरी शिकवे ना किए... कुछ भी ना जुवाँ से काम लिया... श्रोताओं के बीच बहुत लोकप्रिय हुई। नूरजहाँ को वर्ष 1946 में प्रदर्शित निर्माता-निर्देशक महबूब खान की अनमोल घड़ी में काम करने का मौका मिला। महान संगीतकार नौशाद के निर्देशन में नूरजहाँ का गाए गीत आवाज दे कहाँ है, आजा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे, जवाँ है मोहब्बत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है।वर्ष 1947 में भारत विभाजन के बाद नूरजहाँ ने पाकिस्तान जाने का निश्चय कर लिया। फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार ने जब नूरजहाँ से भारत में ही रहने की पेशकश की तो नूरजहाँ ने कहा, मैं जहाँ पैदा हुई हूँ वहीं जाऊँगी।
पाकिस्तान जाने के बाद भी नूरजहाँ ने फिल्मों में काम करना जारी रखा।लगभग तीन वर्ष तक पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री में खुद को स्थापित करने के बाद नूरजहाँ ने फिल्म चैनवे का निर्माण और निर्देशन किया। उसने बॉक्स ऑफिस पर खासी कमाई की। इसके बाद वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म दुपट्टा ने फिल्म चैनवे के बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया।फिल्म दुपट्टा में नूरजहां की आवाज में सजे गीत श्रोताओं के बीच इस कदर लोकप्रिय हुए कि न सिर्फ इसने पाकिस्तान में बल्कि पूरे भारत वर्ष में भी धूम मचा दी। ऑल इंडिया रेडियो से लेकर रेडियो सिलोन पर नूरजहाँ की आवाज का जादू श्रोताओं पर छाया रहा।
नूरजहां ने इस बीच ने गुलनार (1953), फतेखान (1955), लख्ते जिगर (1956),इंतेजार (1956), अनारकली (1958), परदेसियाँ (1959), कोयल (1959) और मिर्जा गालिब (1961) जैसी फिल्मों में अभिनय से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
वर्ष 1963 में नूरजहां ने अभिनय की दुनिया से विदाई ले ली।वर्ष 1966 में नूरजहाँ पाकिस्तान सरकार द्वारा तमगा-ए-इम्तियाज सम्मान से नवाजी गईं। वर्ष 1982 में इंडिया टॉकी के गोल्डन जुबली समारोह में नूरजहाँ को भारत आने को न्योता मिला, तब श्रोताओं की माँग पर नूरजहाँ ने 'आवाज दे कहाँ है दुनिया मेरी जवाँ है' गीत पेश किया और उसके दर्द को हर दिल ने महसूस किया।वर्ष 1996 में नूरजहां आवाज की दुनिया से भी जुदा हो गईं।वर्ष 1996 में प्रदर्शित पंजाबी फिल्म 'सखी बादशाह ' में नूरजहाँ ने अपना अंतिम गाना कि दम दा भरोसा गाया। नूरजहां ने अपने संपूर्ण फिल्मी करियर में लगभग एक हजार गाने गाए। हिन्दी फिल्मों के अलावा नूरजहाँ ने पंजाबी, उर्दू और सिंधी फिल्मों में भी अपनी आवाज से श्रोताओं को मदहोश किया।अपनी दिलकश आवाज और अदाओं से सभी को महदोश करने वाली नूरजहां 23 दिसंबर 2000 को इस दुनिया से रुखसत हो गईं।
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