, Oct. 12 -- पचास के दशक मे बॉम्बे टॉकीज से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की इसके साथ हीं उन्होंने जूपिटर थियेटर भी खरीदा। अशोक कुमार प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने सबसे पहले समाज का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नकार दी गयी। इसके बाद उन्होनें अपने बैनर तले फिल्म 'परिणीता' का भी निर्माण किया। लगभग तीन साल के बाद फिल्म निर्माण क्षेत्र मे घाटा होने के कारण उन्होंने अशोक कुमार प्रोडक्शन कंपनी बंद कर दी।

वर्ष 1953 मे प्रदर्शित फिल्म 'परिणीता' के निर्माण के दौरान फिल्म के निर्देशक बिमल राय के साथ उनकी अनबन बन हो गयी। इसके बाद अशोक कुमार ने बिमल राय के साथ काम करना बंद कर दिया। लेकिन अभिनेत्री नूतन के कहने पर अशोक कुमार ने एक बार फिर बिमल राय के साथ साल 1963 में प्रदर्शित फिल्म 'बंदिनी' मे काम किया और यह फिल्म हिन्दी फिल्म इतिहास की क्लासिक फिल्मों मे शुमार की जाती है। अभिनय में एकरपता से बचने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिए अशोक कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। साल 1958 में प्रदर्शित फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' में उनके अभिनय के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। हास्य से भरपूर इस फिल्म में अशोक कुमार के अभिनय को देख दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।

वर्ष 1968 मे प्रदर्शित फिल्म 'आर्शीवाद' में अपने बेमिसाल अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए गए। इस फिल्म में उनका गाया गाना 'रेल गाड़ी रेल गाड़ी' बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद साल 1967 में प्रदर्शित फिल्म 'ज्वैलथीफ' में उनके अभिनय का नया रूप दर्शकों को देखने को मिला। इस फिल्म मे वह अपने सिने करियर मे पहली खलनायक की भूमिका में दिखाई दिए। इस फिल्म के जरिये भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।

वर्ष 1984 मे दूरदर्शन के इतिहास के पहले सोप ऑपेरा 'हमलोग' में वह सीरियल के सूत्रधार की भूमिका में दिखाई दिए और छोटे पर्दे पर भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। दूरदर्शन के लिए ही अशोक कुमार ने भीमभवानी, बहादुर शाह जफर और उजाले की ओर जैसे सीरियल मे भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया। अशोक कुमार को मिले सम्मान की चर्चा की जाये तो वह दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए हैं। साल 1988 में हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से भी अशोक कुमार सम्मानित किए गए। लगभग छह दशक तक अपने बेमिसाल अभिनय से दर्शको के दिल पर राज करने वाले अशोक कुमार 10 दिसंबर 2001 को सदा के लिए अलविदा कह गए।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित