फगवाड़ा , दिसंबर 23 -- लोकसभा सांसद डॉ राज कुमार चब्बेवाल ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को प्रस्तावित 'जी राम जी' अधिनियम से बदलने के लिए केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए इसे ग्रामीण भारत की आर्थिक सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों पर गंभीर प्रहार बताया है।
उन्होंने कहा कि यह कदम देश के सबसे महत्वपूर्ण अधिकार-आधारित कल्याणकारी कानूनों में से एक को कमजोर करने का एक सुनियोजित प्रयास है।
डॉ. चब्बेवाल ने मंगलवार को यहां जारी एक बयान में कहा कि मनरेगा कोई साधारण सरकारी योजना नहीं है, बल्कि यह एक कानूनी रूप से प्रदत्त अधिकार है जिसे ग्रामीण परिवारों को सुनिश्चित मजदूरी रोजगार प्रदान करके उनकी आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया है। उन्होंने कहा कि इस कानून ने ग्रामीण बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, संकटग्रस्त पलायन को कम करने और समाज के सबसे गरीब वर्गों के लिए श्रम की गरिमा को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। उन्होंने कहा कि इसे बदलने या कमजोर करने का कोई भी प्रयास गरीब-विरोधी मानसिकता को उजागर करता है। सांसद ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने समय पर मजदूरी भुगतान, पर्याप्त निधि और रोजगार के अवसरों के विस्तार के माध्यम से मनरेगा को मजबूत करने के बजाय, बजट संबंधी बाधाओं, मजदूरी के वितरण में देरी और प्रौद्योगिकी आधारित नियंत्रणों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण कार्यक्रम को लगातार कमजोर किया है। उन्होंने चेतावनी दी कि वैधानिक गारंटी को विवेकाधीन ढांचे से बदलने से ग्रामीण श्रमिकों को उनके कानूनी अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा और उन्हें प्रशासनिक निर्णयों के भरोसे छोड़ दिया जाएगा।
डॉ. चब्बेवाल ने चेतावनी दी कि ऐसा कदम किसानों, कृषि मजदूरों , दलितों और हाशिए पर पड़े समुदायों को असमान रूप से नुकसान पहुंचाएगा और संविधान में निहित सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को कमजोर करेगा। उन्होंने बताया कि आर्थिक संकट के समय मनरेगा का महत्व विशेष रूप से स्पष्ट हो जाता है, जब यह योजना बेरोजगारी और आय असुरक्षा का सामना कर रहे लाखों परिवारों के लिए जीवन रेखा का काम करती है।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित