दंतेवाड़ा , नवंबर 27 -- छत्तीसगढ़ बस्तर अंचल में खेती-किसानी के साथ मत्स्य पालन अब किसानों की आय का मजबूत सहारा बन रहा है। मौसम परिवर्तन और फसल के बाजार मूल्य में होने वाले उतार-चढ़ाव का सीधा असर किसान की आय पर पड़ता है, लेकिन मत्स्य पालन जैसे व्यवसाय कठिन समय में 'सपोर्ट सिस्टम' साबित हो रहे हैं। दंतेवाड़ा जिले के अधिकांश किसान वर्षा-आधारित धान फसलों पर निर्भर रहते हैं, जिससे आय सीमित और अस्थिर बनी रहती है। ऐसे हालात में पशुपालन, कुक्कुट पालन और खास तौर पर मछली पालन आजीविका का दूसरा मजबूत स्तंभ बनकर उभर रहा है।

गुरुवार को जिला पीआरओ से मिली जानकारी के मुताबिक, विकासखंड दंतेवाड़ा के ग्राम फुलनार अंतर्गत ग्राम फुलनार के जागरूक किसान सन्तुराम पोड़ियाम (पिता बोना राम) ने इसी संभावना को अवसर में बदला। धान की खेती को पुश्तैनी कार्य बताते हुए उन्होंने कहा कि इसे वे हर स्थिति में जारी रखते, लेकिन आय बढ़ाने के लिए समानांतर व्यवसाय अपनाना उनका सपना था। धान उत्पादन में अत्यधिक लागत, मेहनत, मजदूरों की कमी और सीमित उपज जैसी समस्याओं के बीच उनका रुझान मत्स्य पालन की ओर हुआ।

मत्स्य विभाग से संपर्क करने पर उन्हें 1.00 हेक्टेयर भूमि पर तालाब निर्माण का अवसर मिला। विभागीय सहयोग से तालाब खुदवाकर उन्होंने मछली पालन शुरू किया। इसके बाद विभागीय योजनाओं के अंतर्गत वे आधुनिक मत्स्य तकनीक, आइस बॉक्स, जाल, फिश माउंट, अंगुलिका संचयन योजना के तहत मछली बीज एवं मछुआ प्रशिक्षण से लाभान्वित हुए। इस सहयोग ने उनके उत्पादन और प्रबंधन क्षमता को मजबूत किया।

सन्तुराम बताते हैं कि पहले धान की खेती से वे केवल 8-10 क्विंटल उपज प्राप्त कर पाते थे, जो परिवार के जीवन-यापन के लिए भी पर्याप्त नहीं होती थी,लेकिन मत्स्य पालन से अब वे प्रति वर्ष लगभग 2 लाख रुपये की शुद्ध आय अर्जित कर रहे हैं। इस पहल ने उनके परिवार को आर्थिक सुरक्षा दी और जीवन स्तर में स्थायी सुधार लाया। वे मानते हैं कि आज उनका जीवन पहले की तुलना में अधिक सुखमय और आत्मनिर्भर है। उनकी यह सफलता गांव-अंचल के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा और ग्रामीण आजीविका के नए मॉडल का उदाहरण बन चुकी है।

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