दरभंगा , नवंबर 28 -- दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर देवनारायण झा ने शुक्रवार को कहा कि भाव जब आत्मा से निकलते हैं तो साहित्य सृजित होता है।
प्रो. झा ने ने आज महाराजा कामेश्वर सिंह की 118वीं जयंती के अवसर पर कल्याणी निवास परिसर में आयोजित स्मृति व्याख्यान में कहा कि महाराजा श्री सिंह बहुत बड़े दानवीर थे और उनके दिए गये दान से देश भर में अनेकों शैक्षणिक संस्थानों को स्थापित किया गया।
पूर्व कुलपति ने दरभंगा की धरती पर उपजे साहित्य की चर्चा की और कहा कि भाव जब आत्मा से निकलते हैं तो साहित्य सृजित होता है। उन्होंने कहा कि रस विशिष्ट शब्द और अर्थ से सन्निहित विषय ही साहित्य है।
उन्होंने कहा कि मिथिला में कुल 18 प्रकार की विद्या परिकल्पित की गयी है, और मूल रूप से ज्ञान की सभी शाखाओं का विकास मिथिला में हुआ है। उन्होंने कहा कि मिथिला साहित्य और ज्ञान के लिए बहुत खास स्थान के रूप में जाना जाता है और भूतकाल में जीवन से निरपेक्ष होकर मैथिल विद्वान आत्म ज्ञान में लीन रहे हैं। इसी आत्म ज्ञान में रत रहने के कारण मैथिलों ने अलौकिक सत्ता को समझने के लिए दर्शन को विकसित किया तथा दर्शन के साथ विद्या के विभिन्न शाखाओं को सृजित किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा, कल्प, निरूक्त, ज्योतिष आदि सभी वेदांगों में मिथिला की देन अभूतपूर्व है।
प्रो. झा ने कहा कि ज्ञान के क्षेत्र में खण्डन, मंडन की परम्परा के कारण मिथिला में विद्या के सभी क्षेत्रों में काफी विकास हुआ है। पूरे सनातन क्षेत्र में मिथिला के सामान्य व्यवहार को शास्त्रीय मानकर उसका अनुकरण किया जाता है। उन्होंने कहा कि मिथिला केवल धर्म और कर्म की भूमि नहीं है, अपितु मोक्ष की भी भूमि है। यहां भोग के साथ ही साधना, तंत्र, मंत्र, कर्म और धर्म सभी क्षेत्रों में काफी कार्य हुए हैं। मौलिक रचनाओं के साथ ही टीका और व्याख्याएं भी लिखीं गई है।
इस स्मृति व्याख्यान की अध्यक्षता प्रोफेसर धर्मेंद्र कुमर ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में मिथिला की साहित्य परम्परा में लोकसाहित्य की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मिथिला का प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास पूर्णतः अभिजन इतिहास है। उन्होंने कहा कि आधुनिक काल में जातीय और वर्गीय चेतना के प्रवाह में इतिहास लेखन के दौरान अभिजन और सामान्य जन सभी समाहित हो गये हैं। मिथिला की लोकगाथाओं से स्पष्ट होता है कि पूर्व मध्य काल से ही निम्न वर्ग में वर्गीय चेतना उभरने लगी थी।
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