लखनऊ , नवम्बर 23 -- भारत में लगभग 10 लाख लोग टाइप एक डायबिटीज़ के साथ जीवन जी रहे हैं। यह संख्या अमेरिका के बाद विश्व में दूसरी सबसे बड़ी है। इनमें से लगभग तीन लाख बच्चे और किशोर (20 वर्ष से कम आयु) हैं जो भारत को टाइप एक डायबिटीज़ वाले युवाओं की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बनाता है। हर वर्ष लगभग 35000 नए बच्चे और किशोर इस रोग से प्रभावित समूह में जुड़ते हैं।
रविवार को संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में टाइप 1 डायबिटीज़ सपोर्ट ग्रुप कार्यक्रम उत्साहपूर्वक आयोजित किया गया। इसमें टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित लगभग 50 परिवारों के कुल 200 सदस्य शामिल हुए। कार्यक्रम की शुरुआत एक विशेष नाटक से हुई, जिसे डायबिटीज़ नर्स एजुकेटर्स, डॉक्टरों और स्टाफ ने प्रस्तुत किया। इस नाटक में सही शिक्षा, समय पर इलाज और जागरूकता के महत्व को सरल रूप में दर्शाया गया।
कार्यक्रम में प्रोफेसर प्रीति दबडगांव और प्रोफेसर वी. भाटिया ने बच्चों और परिवारों से संवाद किया तथा उन्हें प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि नियमित इंसुलिन थेरेपी और ब्लड शुगर की लगातार जाँच टाइप 1 डायबिटीज़ नियंत्रण की आधारशिला है। साथ ही उन्होंने परिवारों को सलाह दी कि वे किसी भी प्रकार की गलत जानकारी, दुष्प्रचार या अवैज्ञानिक उपचार के दावों से दूर रहें।
विशेषज्ञों ने बताया कि इस प्रकार के सपोर्ट ग्रुप कार्यक्रम परिवारों को न केवल भावनात्मक मजबूती देते हैं, बल्कि पारस्परिक अनुभव साझा करने का अवसर भी प्रदान करते हैं। इससे परिवारों में सामाजिक जुड़ाव बढ़ता है और वे स्वयं को इस यात्रा में अकेला महसूस नहीं करते।
गौरतलब है कि समय पर निदान, सही डायबिटीज़ शिक्षा और पीयर ग्रुप सपोर्ट के माध्यम से टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चे और किशोर पूर्णतः स्वस्थ और संतोषजनक जीवन जी सकते हैं। इसी उद्देश्य से एंडोक्राइनोलॉजी और पीडियाट्रिक एंडोक्राइनोलॉजी विभाग प्रतिवर्ष टाइप 1 डायबिटीज़ सपोर्ट ग्रुप कार्यक्रम का आयोजन करते हैं, ताकि इन परिवारों को एक मंच पर लाकर संवाद व समर्थन प्रदान किया जा सके।
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