पटना, सितंबर 28 -- भारत के उपराष्ट्रपति चंद्रपुरम पोन्नुसामी (सीपी) राधाकृष्णन ने रविवार को कहा कि बिहार बुद्ध, महावीर जैसे महापुरुषों, मौर्य जैसे प्रतापी शासकों, लिच्छवि जैसे गणतंत्र तथा नालंदा, तक्षशिला जैसे प्राचीन शैक्षणिक केंद्रों की भूमि है और उसी धरती पर एक ऐसे कार्यकम का हिस्सा बनना जिसमें दुनिया भर से आये 550 विद्वान शमिल हुए, उनके लिए अविस्मरणीय पल हैं।

श्री राधाकृष्ण ने आज बिहार सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित ' 'उन्मेष.. अभिव्यक्ति का उत्सव' के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मंच से कहा, 'इस उत्सव मे 16 देशों के 100 से ज्यादा भाषाओं के जानकार 550 लेखक और संस्कृति से जुड़े नाम आये जो बेहद उत्साहवर्धक और प्रेरणादायक है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि बिहार की "एक गौरवमयी सांस्कृतिक, शैक्षिक, धार्मिक और राजनीतिक परम्परा है। उन्होंने कहा कि इसी धरती पर बुद्ध और महावीर पैदा हुए जिन्होंने दुनिया को ज्ञान के साथ अहिंसा की शिक्षा दी।

श्री राधाकृष्ण ने कहा कि बिहार की धरती अदभुत है और एक ही काल मे यहां मौर्य जैसा मजबूत राजतंत्र दिखा तो दुनिया ने वैशाली की भूमि पर लिच्छवि गणतंत्र को पनपते देखा। उन्होंने कहा कि बहुत से लोगो को ये भ्रम होता है कि लोकतंत्र यूरोप में पैदा हुआ था लेकिन उन्हें जानने की जरूरत है कि 2500 साल पहले बिहार के वैशाली में लिच्छवि गणतंत्र पैदा हो गया था।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इसी बिहार की धरती ने गांधी जी को महात्मा बनाया और जब प्रजातंत्र पर खतरा मंडराया तो बिहार में ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का बिगुल फूंका था। उन्होंने कहा कि वह 1975 में सिर्फ 19 वर्ष की उम्र में जेपी आंदोलन में शामिल हुए थे।

श्री राधाकृष्णन ने कहा कि बिहार सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने उन्मेष नाम के इस अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक उत्सव का आयोजन कर देश के उस अतीत को याद दिला दिया है जब इसी बिहार की धरती पर नालंदा और तक्षशिला में पढ़ने के लिए दुनिया भर से विद्यार्थी आते थे और एशिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय भी बिहार में ही था। उन्होंने कहा कि समय बदला है लेकिन तमाम आईएएस और आईआईटी में चुने जाने वाले छात्रों को देख कर लगता है कि आज भी बिहारियों में प्रतिभा की कमी नही है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि बिहार की मिट्टी में कुछ खास बात है और प्राचीन गौरव के साथ आधुनिक काल में भी लेखन और सांस्कृतिक विकास के क्षेत्र में इसका योगदान अमूल्य है।

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