गोरखपुर एक अक्टूबर (वार्ता) स्वतंत्रता आन्दोलन के सूत्रधार राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने पहली बार आठ फरवरी 1921 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित बाले मियां के मैदान में अपार जनसमूह को सम्बोधित करते हुए ब्रिटिश हुकूमत को देश से हटाने के लिए लोगों का आवाहन किया था कि वे लोग सरकारी नौकरियां का त्याग कर आन्दोलन में शामिल हों।
गाधी जी के सम्पर्क में गोरखपुर शहर तो तभी आ गया था जब वह वर्ष 1914 में चम्पारण जा रहे थे। गोरखपुर में स्थित बाले मियां के मैदान में आठ फरवरी 1921 को एक लाख से अधिक लोग एकत्र थे, जहां गांधी जी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहला भाषण दिया। उनका भाषण सुनकर सभी लोग उनके मुरीद हो गये।
गांधी जी ने कहा था कि यदि विदेशी वस्त्र का बहिष्कार पूरा हो गया और लोगों ने चरखे से कातकर तैयार किये गये धागे का कपडा पहनना शुरू कर दिया तो अंग्रेजों को यह देश छोडकर जाने के लिए विवश होना पडेगा। हमें गुलामी की जंजीर तोडनी है क्योंकि यह उतना ही जरूरी है जितना सांस लेने के हवा जरूरी है।
महात्मा गांधी के इस उदभादन का परिणाम दो रूप में सामने आया एक तो लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पडे नौकरी, कचहरी और स्कूल आदि छोडकर सभी गांधी जी के साथ हो लिए। नये सेवकों की भर्ती शुरू हो गयी और गांव-गांव पंचायत स्थापित हुयी।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की जनता ने तन-ंमन से गांधी जी को स्वीकार कर लिया। पूर्वांचल का गोरखपुर, खलीलाबाद, संतकबीर नगर, बस्ती, मगहर और मऊ आदि क्षेत्रों में चरखा चलाने वालों की बाढ आ गयी।
गांधी जी ने 30 सितम्बर 1929 से पूर्वांचल का दौरा दूसरे चरण में शुरू किया। वह चार अक्टूबर 1929 को आजमगढ से चलकर उसी दिन नौ बजे गोरखपुर आ गये। यहां उन्होंने चार दिन तक प्रवास किया। सात अक्टूबर 1929 को उन्होंने गोरखपुर में मौन व्रत भी रखा और 9 अक्टूबर 1938 को बस्ती के लिए रवाना हो गये।
गांधी जी के साथ जाने वालों में प्रख्यात उर्दू शायर फिराक गोरखपुर भी थे। वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह और 1931 में जमींदारी अत्याचार के विरूध्द यहां की जनता ने प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना के नेतृत्व में आंदोलन में भाग लिया। वर्ष 1930 में प्रोफेसर सक्सेना ने गांधी जी के आहवान पर गोरखपुर स्थित सेन्ट एन्ड्रयूज कालेज के प्रवक्ता पद का परित्याग कर पूर्वांचल के किसान, मजदूरों का नेतृत्व संभाल लिया।
पूर्वांचल में अस्पृश्यता एक बहुत बुरी बीमारी थी जो गांधी जी के नजरों में छिप नहीं सकीं इसे दूर करने के लिए उन्होंने 22 जुलाई1934 से दो अगस्त 1938 तक विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया और गांव-ंगांव दलित बस्तियों में गये। उस समय उन्हे गोरखपुर में इकटठा ये गये 951 रूपये की थैली भेंट की गयी। यहीं 19 जुलाई 1921 को बाबा राघव दास गांधी जी के सम्पर्क में आये और गांधी जी ने नारा दिया.....आजादी हमारा अधिकार हैै.....।
गांधी जी ने कहा कि लोगों को पहनने के लिए वस्त्र मुहैया कराने वाला बुनकर और भोजन मुहैया कराने वाला किसान सबसे अधिक बेहाल है। गन्ना मिलें बन्द हो गयी हैं। चरखे और करघे खामोश हैं। देखिए शासन की निगाहें कब इन तक पहुंचती हैं। किसान, बुनकर खुशहाल होगें तभी तो गांधी का सपना साकार होगा। उनका अर्थशस्त्र जीता-ंजागता नजर आयेगा।
आज गांधी जी द्वारा दिये गये अभियानो में एक अभियान स्वच्छता अभियान गोंरखपुर में भी हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीके स्वच्छ अभियान के बारे में गांधी जी की प्रासंगिकता और सजा दी है। गांधी जी की 156 वीं जयंती पर स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने का संकल्प अब लोगों में दिख रहा है। सरकारी कार्यालयों और स्वयंसेवी संगठनों ने अपने अपने क्षेत्रों में भी स्वच्छ रखने का बीडा उठाया है।
केन्द्र और राज्य सरकार के अधिकारियों व कर्मचारियों ने भी अब इसकी पहल करते हुए हांथों में -झाडू लेकर लोगों को संदेश दिया कि अपने आस पास की सफायी सभी का व्यक्तिगत कर्तव्य है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिया गया नारा तब तक सफल नहीं होगा जब तक देश का प्रत्येक नागरिक अपने हिस्से की सफायी कर्तव्य समझकर नहीं करेगा।
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