बाराबंकी , दिसंबर 25 -- उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के अगेहरा गांव की बाल वैज्ञानिक पूजा पाल को प्रधानमंत्री बाल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। किसानों के लिए धूल-रहित थ्रेसर का अभिनव मॉडल विकसित करने वाली पूजा को यह प्रतिष्ठित सम्मान शुक्रवार को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में प्रदान किया जाएगा।

इस बात की जानकारी मिलने के बाद पूजा के परिवार, गांव में खुशी की लहर है। राज्य के बाराबंकी जिले के छोटे से गांव से निकलकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली पूजा पाल आज जिले और प्रदेश का गौरव बन चुकी हैं। उनके नवाचार से किसानों को फसल मड़ाई (गेहूं से भूसा अलग करना) के दौरान उड़ने वाली धूल से राहत मिलती है, जिससे सांस से जुड़ी बीमारियों का खतरा काफी हद तक कम होता है।

जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी ने बताया कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद तहसील सिरौली गौसपुर के ग्राम अगेहरा की रहने वाली पूजा पाल को यह सम्मान दिया जाएगा।

आठवीं कक्षा की छात्रा पूजा पाल उस समय चर्चा में आईं, जब उन्होंने किसानों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए धूल-रहित थ्रेसर का मॉडल तैयार किया था। यह थ्रेसर फसल की मड़ाई के दौरान उत्पन्न होने वाली धूल को नियंत्रित करता है और किसानों को श्वसन संबंधी समस्याओं से बचाने में सहायक है। पूजा ने सातवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में अपने धूल-रहित थ्रेसर मॉडल को प्रस्तुत किया था। उनके इस मॉडल को केंद्र सरकार और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने उपयोगी और प्रभावी माना। इसी नवाचार के चलते पूजा को जापान सहित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला।

पूजा को इससे पहले राज्य सरकार की ओर से बाल वैज्ञानिक के रूप में एक लाख रुपये की सम्मान राशि दी जा चुकी है। उसके पिता पुत्ती लाल मजदूरी करते हैं, जबकि मां सुनीला देवी एक सरकारी स्कूल में रसोइया हैं। पूजा तीन बहनों और दो भाइयों के साथ रहती हैं। परिवार का जीवन बेहद सीमित संसाधनों में चलता रहा है और वे लंबे समय तक छप्परनुमा मकान में रहे लेकिन अब प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत परिवार को पक्का मकान स्वीकृत हो चुका है।

प्रशासन ने पूजा पाल को जिले में मिशन शक्ति का रोल मॉडल भी बनाया है. पूजा का कहना है कि 'मेहनत, लगन और सही दिशा में सोच हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता' आज पूजा पाल की सफलता प्रदेश की बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी है और यह साबित करती है कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती।

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