नयी दिल्ली , नवंबर 28 -- उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के फैसले को चुनौती देने वाली बायजू रवींद्रन की याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।

एनसीएलटी ने 17 अप्रैल के अपने फैसले में बायजू कंपनी और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के बीच ऋण निपटाने संबंधी हुए समझौते को कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (सीओसी) से पहले का निपटान (प्री-सीओसी सेटलमेंट) मानने से इनकार कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने एनसीएलएटी में हस्तक्षेप करने से आज साफ इनकार कर दिया।

यह विवाद तब शुरू हुआ जब बीसीसीआई ने बायजू की कंपनी पर 158.90 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाने में चूक के कारण दिवालिया प्रक्रिया (आईबीसी) शुरू करने के लिए कानूनी याचिका दायर की थी। जुलाई 2024 में, अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली और बायजू की कंपनी के लिए दिवालिया प्रक्रिया शुरू हो गई। दिवालिया प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद, बायजू और बीसीसीआई ने आपस में समझौता कर लिया और बीसीसीआई दिवालिया प्रक्रिया से पीछे हटने के लिए सहमत हो गया। आईबीसी तहत, अगर दिवालिया प्रक्रिया के लिए 'कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स' (सीओसी) बन जाती है, तो पीछे हटने के लिए सीओसी की मंजूरी लेना अनिवार्य होता है।

एनसीएलएटी की चेन्नई पीठ ने अपने अप्रैल के फैसले में माना था कि बीसीसीआई के निपटान प्रस्ताव को पूर्व-सीओसी निपटान नहीं माना जा सकता है। चूंकि दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की धारा 12ए के तहत बीसीसीआई का निकासी आवेदन सीओसी के गठन के बाद दायर किया गया था, इसलिए इसके लिए सीओसी की मंजूरी आवश्यक है।

बायजू ने तर्क दिया कि चूंकि समझौता और निकासी का फॉर्म सीओसी बनने से पहले जमा किया गया था, इसलिए सीओसी की मंजूरी जरूरी नहीं है और इसे 'प्री-सीओसी सेटलमेंट' माना जाए।

अधिकरण ने हालांकि कहा कि महत्वपूर्ण तारीख वह है जब निकासी का फॉर्म अधिकरण में दाखिल किया गया, न कि वह तारीख जब फॉर्म केवल अंतरिम अधिकारी को सौंपा गया था।

अधिकरण में फॉर्म सीओसी बनने के बाद दाखिल हुआ इसलिए इस निपटारे के लिए सीओसी की मंजूरी लेना अनिवार्य है।

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