(जयंत राय चौधरी से)नयी दिल्ली , दिसंबर 23 -- बंगलादेश में चरमपंथी ताकतों के पुनरुत्थान और भारत के प्रति इस्लामी चरमपंथी संगठनों के बढ़ते शत्रुतापूर्ण रवैये से भारत के रणनीतिक संस्थान चिंतित है।
मारीशस के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शांतनु मुखर्जी ने 'यूनीवार्ता' को दिये एक साक्षात्कार में कहा कि भारत की पूर्वी सीमा पर घटने वाले हालिया घटनाक्रम बड़ी मुश्किल से उग्रवाद के खिलाफ हासिल की गयी जीत को 'खतरनाक तरीके से पलटने' का संकेत देते हैं।
राजनयिक मिशनों और व्यक्तियों पर भीड़ द्वारा हाल के हमलों के पीछे कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों का हाथ माना जा रहा है और भारत के रणनीतिक संस्थान इस प्रवृत्ति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी मुखर्जी ने उल्लेख किया कि कट्टरपंथी कैदियों को जेल से रिहा कर दिया गया है और उन्हें पुनर्गठित होने की अनुमति दे दी गई है। इससे ऐसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं जो बंगलादेश को एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय 'जिहादी' नेटवर्क का आधार बना सकती हैं, जैसा कि 1990 के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में था। श्री मुखर्जी ने कहा कि पिछले साल रिहा होने के बाद इन समूहों ने जिस तरह से खुद को संगठित किया है वह अत्यंत चिंताजनक है।
आतंकवाद के केंद्र के रूप में बंगलादेश की भूमिका 1990 के दशक के अंत में तब चर्चा में आई थी, जब 6 मार्च 1999 को जेसोर में धर्मनिरपेक्ष समूह उदीची द्वारा आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में बम विस्फोट हुआ था। इसमें 10 लोग मारे गए थे और 100 से अधिक घायल हुए थे। उस हमले ने उग्रवादी हिंसा के एक परेशान करने वाले युग की शुरुआत की थी।
यह खतरा 2000 के दशक की शुरुआत में और गहरा गया जिसकी परिणति 21 अगस्त 2004 को ढाका में अवामी लीग की रैली पर हुए ग्रेनेड हमले में हुई, जिसमें 24 लोग मारे गए थे। एक दशक बाद 2016 में ढाका के होली आर्टिसन बेकरी पर हुए हमले में बड़ी संख्या में विदेशियों सहित 22 लोग मारे गए थे।
इस बार भी उदीची और छायानौत जैसे धर्मनिरपेक्ष सांस्कृतिक संस्थानों को भीड़ ने निशाना बनाया है। प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि पिछले वर्षों के विपरीत इस बार पुलिस और सुरक्षा बल ज्यादातर मूकदर्शक बने रहे। रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ श्री मुखर्जी ने कहा कि इससे न केवल बंगलादेश के भीतर हिंसा का जोखिम बढ़ गया है बल्कि भारत के लिए भी नये सिरे से सीमा पार के खतरों के उभरने की आशंका है।
बंगलादेश से जुड़े सीमा पार आतंकवाद को लेकर भारत की चिंताएं दशकों पुरानी हैं। 1990 के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में भारत के पूर्वोत्तर में सक्रिय कई विद्रोही समूह, जिनमें यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के गुट शामिल थे, बंगलादेश के भीतर अपने शिविर और ठिकाने बनाए रखने के लिए जाने जाते थे।
भारतीय एजेंसियों ने 2000 के दशक में कोलकाता और वाराणसी सहित कई शहरों को निशाना बनाने वाले बम विस्फोटों और साजिशों के तार हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (हुजी) और अंसार-उल-बांग्ला जैसे समूहों से जोड़े थे। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उस समय बंगलादेश में मिले राजनीतिक संरक्षण ने ऐसे नेटवर्क को स्वतंत्रता के साथ काम करने की अनुमति दी थी और 'यह फिर से हो सकता है'।
भारतीय अधिकारी विशेष रूप से इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बंगलादेशी उग्रवादी समूह पाकिस्तान और पश्चिम एशिया के चरमपंथी संगठनों के साथ फिर से संबंध स्थापित कर सकते हैं। श्री मुखर्जी ने उन दौर की ओर इशारा किया जब बंगलादेश में प्रशिक्षित उग्रवादी बाद में अफगानिस्तान, सीरिया और इराक जैसे संघर्ष क्षेत्रों में देखे गए थे। उन्होंने चेतावनी दी कि वर्तमान अस्थिरता के बीच इसी तरह का पैटर्न फिर से उभर सकता है।
नयी दिल्ली के सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि यह डर केवल सुदूर युद्ध क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। भारत के भीतर या बंगलादेश में भारतीय हितों के खिलाफ हमलों की संभावना हाल के महीनों में और अधिक हो गई है खासकर भारतीय राजनयिक मिशनों पर हमलों के बाद।
श्री मुखर्जी ने कहा कि इन घटनाओं ने सुरक्षा के पूरे वातावरण की संवेदनशीलता को रेखांकित किया है। उन्होंने तर्क दिया कि भारत को पूरी तरह से रक्षात्मक मुद्रा में आने के लालच से बचना चाहिए। सीमा प्रबंधन को कड़ा करने और सीमा पार की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि कट्टरपंथी विचारधाराओं का मुकाबला करने और दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों को बनाए रखने के लिए लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ाना आवश्यक है।
श्री मुखर्जी ने कहा कि उग्रवाद को जड़ से हराने के लिए दोनों देशों और लोगों के बीच आपसी जुड़ाव आवश्यक है, लेकिन यह सुरक्षा की कीमत पर नहीं हो सकता। भारतीय कर्मचारियाें और अधिकारियों तथा संस्थानों की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। नयी दिल्ली के लिए बंगलादेश के राजनीतिक और सामाजिक घटनाक्रम बहुत महत्व रखते हैं, क्योंकि ये भारत की सीमा सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और दक्षिण एशिया में प्रभाव के संतुलन से जुड़े हैं।
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