नयी दिल्ली , अक्टूबर 10 -- केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घुसपैठ, जनसांख्यिकीय बदलाव और लोकतंत्र को अत्यंत महत्वपूर्ण विषय बताते हुए कहा है कि जब तक प्रत्येक भारतीय और विशेष रूप से युवा इन विषयों से उत्पन्न समस्याओं को नहीं समझता तब तक भारत की संस्कृति, भाषाओं और स्वतंत्रता को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।

श्री शाह ने शुक्रवार को यहां 'घुसपैठ, जनसांख्यिकी परिवर्तन व लोकतंत्र' विषय पर 'नरेन्द्र मोहन स्मृति व्याख्यान' दिया और जागरण साहित्य सृजन पुरस्कार समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि घुसपैठ, जनसांख्यिकीय बदलाव और लोकतंत्र अत्यंत महत्वपूर्ण विषय हैं। उन्होंने कहा कि जब तक प्रत्येक भारतीय, विशेष रूप से देश का युवा इन विषयों को नहीं समझता और इनसे उत्पन्न समस्याओं से परिचित नहीं होता, तब तक हम अपने देश, संस्कृति, भाषाओं और देश की स्वतंत्रता को सुनिश्चित नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि ये तीनों ही विषय आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं।

श्री शाह ने कहा कि इस देश में 1951, 1971, 1991 और 2011 में जनगणना हुई, जिनमें शुरू से ही धर्म पूछने की परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि 1951 में जब यह निर्णय लिया गया तब उनकी पार्टी का गठन भी नहीं हुआ था। यदि देश का विभाजन नहीं हुआ होता, तो शायद धर्म के आधार पर जनगणना करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। उन्होंने कहा कि 1951 की जनगणना में हिंदू आबादी 84 प्रतिशत थी, जबकि मुस्लिम आबादी 9.8 प्रतिशत थी।वर्ष 1971 में हिंदू आबादी 82 प्रतिशत और मुस्लिम आबादी 11 प्रतिशत हो गई। वर्ष 1991 में हिंदू आबादी 81 प्रतिशत और मुस्लिम आबादी 12.2 प्रतिशत हो गई। वहीं, 2011 में हिंदू आबादी 79 प्रतिशत और मुस्लिम आबादी 14.2 प्रतिशत हो गई। इस प्रकार, हिंदू आबादी में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।

श्री शाह ने कहा कि मुस्लिम आबादी में 24.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, जबकि हिंदू आबादी में 4.5 प्रतिशत की कमी आई है। उन्होंने कहा कि यह कमी प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) के कारण नहीं, बल्कि घुसपैठ के कारण हुई है। जब भारत का विभाजन हुआ, तो धर्म के आधार पर हमारे दोनों ओर पाकिस्तान का गठन हुआ, जो बाद में बांग्लादेश और पाकिस्तान के रूप में विभाजित हो गया। उन्होंने कहा कि दोनों ओर से घुसपैठ के कारण जनसंख्या में इतना बड़ा परिवर्तन हुआ।

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि हमें हमारे पड़ोसी देशों - पाकिस्तान और बंगलादेश की स्थिति पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि 1951 में पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 13 प्रतिशत थी, जबकि अन्य अल्पसंख्यकों की आबादी 1.2 प्रतिशत थी। अब पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी घटकर मात्र 1.73 प्रतिशत रह गई है। उन्होंने कहा कि बंगलादेश में 1951 में हिंदुओं की आबादी 22 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 7.9 प्रतिशत रह गई है। श्री शाह ने कहा कि अफगानिस्तान में उस समय 2 लाख 20 हजार हिंदू और सिख थे, जो आज घटकर मात्र 150 रह गए हैं।

उन्होंने कहा कि इन देशों में जो हिंदू आबादी कम हुई, वह धर्मांतरण के कारण नहीं हुई उनमें से बहुत से लोग भारत आकर शरण ले चुके हैं। दूसरी ओर, मुस्लिम आबादी में जो वृद्धि हुई, वह प्रजनन दर के कारण नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में मुस्लिम भाइयों के भारत में घुसपैठ के कारण हुई है।

श्री शाह ने कहा कि जब भारत का विभाजन हुआ, तब यह तय किया गया था कि दोनों देशों में सभी धर्मों के पालन की स्वतंत्रता होगी। उन्होंने कहा कि भारत में यह स्वतंत्रता बनी रही वहीं, पाकिस्तान और बंगलादेश ने स्वयं को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर लिया और इस्लाम को उनका राजधर्म बना लिया गया। कई बार वहाँ अनेक प्रकार के अत्याचार और प्रताड़नाएँ हुईं, जिनके कारण हिंदू वहाँ से भागकर भारत में शरण लेने आए।

उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) किसी की नागरिकता छीनने का नहीं बल्कि नागरिकता प्रदान करने का कार्यक्रम है। इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या किसी अन्य की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य केवल शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि 1951 से 2014 तक जो ऐतिहासिक गलतियाँ हुईं, उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने सुधारने का प्रयास किया।

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