देहरादून , नवम्बर 23 -- उत्तराखंड के आरटीआई एक्टिविस्ट, अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी ने उत्तराखंड पेयजल निगम में वर्षों से चल रही वित्तीय अनियमितताओं का तथ्यों पर आधारित गंभीर खुलासा किया है।
उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) की रिपोर्ट के आधार पर आरटीआई से प्राप्त जानकारी साझा की। साथ ही, उन्होंने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की।
श्री नेगी ने बताया कि वर्ष 2016 से लेकर 2024-25 (मई तक) उत्तराखंड पेयजल निगम में कुल 2660 करोड़ 27 लाख रुपये की गड़बड़ी दर्ज की गई है।
कैग रिपोर्ट में यह स्पष्ट दर्शाया गया है कि कई वर्षों से विभाग ने नियमानुसार ऑडिट नहीं करवाया है। जिससे यह संदेह और गहरा हो जाता है कि ऑडिट न करवाना भी भ्रष्टाचार को छिपाने की एक संगठित रणनीति थी। उन्होंने कहा कि यह गंभीर वित्तीय अपराध है, क्योंकि सार्वजनिक धन का उपयोग बिना परीक्षण, सत्यापन और वैधानिक समीक्षा के किया गया।
उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 2017-18 और 2018-19 में पेयजल निगम का कोई ऑडिट नहीं किया गया, जो कि निगम अधिनियम, वित्तीय नियमों और शासनादेशों का सीधा उल्लंघन है। इसके बावजूद न तो विभाग ने स्पष्टीकरण दिया, न ही शासन ने कोई जवाबदेही तय की।
श्री नेगी ने कैग और आरटीआई के आधार पर बताया कि वर्ष 2016-17 में 92.41 करोड़, 2019-20 में 656.05 करोड़, 2020-21 में 829.90 करोड़, 2021-22 में 43.48 करोड़, 2022-23 में 96.99 करोड़, 2023-24 में 803 करोड़, तथा 2024-25 में मई तक 38.41 करोड़ की अनियमितताएँ दर्ज हुईं। उन्होंने कहा कि इसमें सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य कोरोना काल में, जब राज्य पर स्वास्थ्य और जन-कल्याण संबंधी संकट था, तब भी पेयजल निगम ने 829.90 करोड़ रुपये का गोलमाल कर दिया। यह न केवल वित्तीय अपराध है, बल्कि मानवीय संवेदनहीनता का सबसे बड़ा उदाहरण भी है।
आरटीआई एक्टिविस्ट एवं अधिवक्ता श्री नेगी ने आरोप लगाया कि ठेकेदारों ने जीएसटी तक का भुगतान नहीं किया, जबकि यह भुगतान केंद्रीय कानून के तहत अनिवार्य है। इसके बावजूद विभाग ने न तो कोई नोटिस जारी किया और न ही कोई दंडात्मक कार्रवाई की। कई मामलों में ठेकेदारों को बिना कार्य पूर्ण किए ही और बिना बैंक गारंटी लिए अग्रिम भुगतान कर दिया गया, जो वित्तीय नियमों के मूल सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है।
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