नयी दिल्ली , अक्टूबर 10 -- केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान प्रतिस्पर्धा को एक दूसरे का पूरक बताते हुए कहा है कि पर्यावरण संरक्षण का भारतीय मॉडल अनुभव आधारित है और यह नीतिगत ढांचे पर जोर देता है।

श्री सिंह ने अबू धाबी में वर्ल्ड कन्जर्वेशन कांग्रेस आईयूसीएन में 'जलवायु और लोगों के लिए प्रकृति का वादा-संरक्षण' पर अपने संबोधन में जलवायु संकट के समाधान के लिए विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान को बेहतर ढंग से एकीकृत करने के तरीकों पर चर्चा की। उनका कहना था कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर रहने का महत्व भारतीय संस्कृति और परंपराओं में गहराई से निहित है। इन परंपराओं के मूल में स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल ढलने की क्षमता और प्राकृतिक दुनिया के साथ गहरा सांस्कृतिक जुड़ाव निहित है।

उन्होंने कहा कि जहां आधुनिक विज्ञान स्थिरता और जलवायु परिवर्तन जैसे शब्दों का प्रयोग करता है वहीं भारत ने व्यावहारिक, प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन-शैली के माध्यम से इन सिद्धांतों को लंबे समय से अपनाया है। उनका कहना था कि पर्यावरण संरक्षण का भारतीय मॉडल एक ऐसे नीतिगत ढांचे पर जोर देता है जो साक्ष्य-आधारित, समता-प्रेरित और सांस्कृतिक रूप से निहित हो।

श्री सिंह ने इस अवधारणा को और स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत का लोकाचार मानता है कि विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं, प्रतिस्पर्धा नहीं। इस क्षेत्र में सहयोग की अपार संभावनाएं हैं क्योंकि यहां विज्ञान संस्कृति से और परंपरा नवाचार से मिलती है। भारत इन स्वदेशी प्रणालियों को जलवायु अनुकूलन और जैव विविधता संरक्षण की औपचारिक प्रणालियों में प्रलेखित, प्रमाणित और एकीकृत करने के लिए काम कर रहा है।

उन्होंने अपने संबोधन में पारंपरिक विशेषज्ञता का उदाहरण दिया और कहा कि जैसे नीलगिरी की टोडा जनजातियां चींटियों के घोंसला बनाने के व्यवहार का अवलोकन करके मानसून की भविष्यवाणी करती हैं, या अंडमान के जारवा उथले पानी में मछलियों की आवाजाही के आधार पर चक्रवातों की भविष्यवाणी करते हैं। उन्होंने राजस्थान में सीढ़ीदार कुओं और 'सिल्वर ड्रॉप्स ऑफ राजस्थान' जैसी स्थायी जल संरक्षण प्रणालियों के बारे में भी बात की।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ये प्रयास भारत के उस दृष्टिकोण को दर्शाते हैं जहां विज्ञान परंपरा को बढ़ाता है और परंपरा विज्ञान के साथ एकीकृत होती है। उन्होंने कहा आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान के धागों को एक साथ बुनने से अमूर्त अवधारणाओं से मूर्त कार्यों की ओर बढ़ने में मदद मिलेगी।

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