भुवनेश्वर, सितंबर 28 -- उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने रविवार को पर्यावरणीय विवादों के समाधान, स्थायी पर्यावरणीय समाधानों और बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) व्यवस्था में कंपनी संबंधी मामलों के समाधान के लिए विशेषज्ञ मध्यस्थों की आवश्यकता पर बल दिया है।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मध्यस्थता संघर्षों को कानूनों के माध्यम से सुलझाने की एक प्रक्रिया है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भय के कारकों को दूर करने और प्रक्रिया में लचीलापन बढ़ाने से मध्यस्थता आसान हो जाती है।

चर्चा में भाग लेने वाले अन्य गणमान्य व्यक्तियों में कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी, महाराष्ट्र के महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ, छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता प्रफुल एन. भारत और वरिष्ठ अधिवक्ता जवाद एजे शामिल थे।

उन्होंने मध्यस्थता में वकीलों की दक्षता पर जोर देते हुए कहा कि मध्यस्थता प्रक्रिया के लिए वकीलों को पेशेवर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्होंने मध्यस्थता के भविष्य के लिए उचित संस्थागत ढांचे पर भी ध्यान केंद्रित किया। सम्मेलन के दूसरे दिन आयोजित इंटरैक्टिव सत्र-II में भारत में मध्यस्थता के लिए इकोसिस्टम को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।

इस सत्र की अध्यक्षता भारत की शीर्ष अदालत की न्यायाधीश न्यायमूर्ति नागरत्ना ने की और सह-अध्यक्षता न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह और हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधवालिया ने की। इंटरैक्टिव सत्र और पैनल चर्चा में भूमि, जल, स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा लापरवाही से संबंधित विवादों के समाधान में मध्यस्थता पर चर्चा की गई।

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