लखनऊ , नवंबर 24 -- उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) अमित घोष ने कहा है कि पंचायत स्तर तक मजबूत तालमेल और समुदाय की सक्रिय भागीदारी के बिना "टीबी मुक्त भारत" का लक्ष्य संभव नहीं है।
श्री घोष सोमवार को कहा कि हर टीबी रोगी की समय पर पहचान, परीक्षण और नियमित उपचार सुनिश्चित करना अनिवार्य है। साथ ही उन्होंने प्रदेश में टीबी परीक्षण तथा टीबी-रोकथाम गतिविधियों को और तेज करने के निर्देश दिए।
टीबी (क्षय रोग) उन्मूलन के उद्देश्यों को तेजी से प्राप्त करने के लिए उत्तर भारत के सात राज्यों हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश म के स्वास्थ्य और पंचायती राज विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों ने दो दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला में विस्तृत विचार-विमर्श किया। आयोजन सेंट्रल टीबी डिवीजन, भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय तथा उत्तर प्रदेश चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के संयुक्त तत्वावधान में हुआ।
कार्यक्रम के दौरान सेंट्रल टीबी डिवीजन की उपमहानिदेशक डॉ. उर्वशी बी. सिंह ने बताया कि टीबी उन्मूलन के लिए दस लक्षणों की पहचान (पूर्व में 4), हाई-रिस्क समूहों में सक्रिय केस खोज अभियान, तथा मल्टी-ड्रग-रेज़िस्टेंट टीबी में उत्कृष्ट परिणाम जैसी रणनीतियाँ प्रभावी साबित हो रही हैं। संयुक्त आयुक्त डॉ. संजय मट्टू ने कहा कि सामुदायिक भागीदारी और बहु-विभागीय समन्वय कार्यक्रम की सफलता की कुंजी हैं।
पंचायती राज मंत्रालय के निदेशक विजय कुमार ने बताया कि ग्राम पंचायतें टीबी उन्मूलन अभियान का वास्तविक नेतृत्व कर रही हैं। वे सक्रिय केस खोज, उपचार अनुकरण, समुदाय-आधारित निगरानी और जागरूकता गतिविधियों का प्रभावी क्रियान्वयन कर रही हैं।
राज्य के महानिदेशक-स्वास्थ्य डॉ. रतन पाल सिंह सुमन ने टीबी के दस प्रमुख लक्षण खांसी, बुखार, भूख कम लगना, वजन घटना, रात में पसीना, थकान, खून आना, सांस में तकलीफ, सीने में दर्द, तथा गर्दन में गाँठ को समुदाय तक पहुंचाने पर विशेष बल दिया। राज्य क्षयरोग अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र भटनागर ने वृद्ध, कुपोषित, जेल/हॉल्टल-बस्तियाँ, निर्माण श्रमिकों आदि उच्च-जोखिम समूहों पर लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता बताई।
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