जयपुर , दिसंबर 21 -- राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने अरावली मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ के बयानों पर पलटवार करते हुए कहा है कि भाजपा सरकार की खनन माफिया से मिलीभगत और गलत नीतियों पर पर्दा डालने के लिए अनर्गल आरोप लगाये जा रहे हैं जबकि सच्चाई सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है।

श्री गहलोत ने रविवार को एक बयान में कहा कि यह सत्य है कि वर्ष 2003 में तत्कालीन राज्य सरकार को विशेषज्ञ समिति ने आजीविका और रोजगार के दृष्टिकोण से '100 मीटर' की परिभाषा की सिफारिश की थी, जिसे राज्य सरकार ने एफिडेविट के माध्यम से 16 फरवरी 2010 को उच्चत्तम न्यायालय के सामने रखा लेकिन न्यायालय ने इसे महज तीन दिन बाद ही खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा "हमारी सरकार ने न्यायपालिका के आदेश का पूर्ण सम्मान करते हुए इसे स्वीकार किया और फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) से मैपिंग कराई।

उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि जो परिभाषा उच्चत्तम न्यायालय में 14 साल पहले 2010 में ही 'खारिज' हो चुकी थी, उसी परिभाषा का 2024 में राजस्थान की मौजूदा भाजपा सरकार ने समर्थन करते हुए केन्द्र सरकार की समिति से सिफारिश क्यों की। क्या यह किसी का दबाव था या इसके पीछे कोई बड़ा खेल है।

उन्होंने कहा कि हमारी कांग्रेस सरकार ने पहली बार अरावली में अवैध खनन पकड़ने के लिए गंभीर प्रयास करते हुए 'रिमोट सेंसिंग' का उपयोग करने के निर्देश दिए। 15 जिलों में सर्वे के लिए सात करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया। राज्य सरकार ने अवैध खनन को रोकने की सीधी जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक और जिला कलेक्टर को सौंपी। खान विभाग के साथ पुलिस को भी कार्रवाई के अधिकार दिए गए जिससे अवैध खनन पर लगाम लगी।

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