नयी दिल्ली , नवंबर 24 -- साधारण पृष्ठभूमि से उठकर देश के उच्चतम न्यायालय के शिखर तक पहुँचना, एक ऐसी कहानी है जो दृढ़ संकल्प, ज्ञान और न्याय के प्रति अटूट समर्पण को दर्शाती है। यह गाथा है माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत की, जिनका जीवन कानूनी पेशे में उत्कृष्टता की एक मिसाल है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनकी शिक्षा की नींव भी हिसार में ही पड़ी, जहाँ उन्होंने 1981 में गवर्नमेंट पोस्टग्रेजुएट कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से 1984 में कानून में स्नातक यानी एलएलबी की डिग्री अर्जित की।
अपनी शिक्षा पूरी करने के तुरंत बाद, उन्होंने 1984 में हिसार के जिला न्यायालय में वकालत शुरू कर दी। हालाँकि, उनकी महत्वाकांक्षाएँ उन्हें जल्द ही बड़े मंच पर ले गईं। सन 1985 में, वह पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में वकालत करने के लिए चंडीगढ़ चले गए। यहाँ, उन्होंने संवैधानिक, एवं दीवानी मामलों में विशेषज्ञता हासिल की। अपने करियर के दौरान, उन्होंने कई विश्वविद्यालयों, बोर्डों, निगमों, बैंकों और स्वयं उच्च न्यायालय का भी प्रतिनिधित्व किया, जिससे उनकी कानूनी क्षमता की गहरी छाप पड़ी।
उन्होंने सात जुलाई, 2000 को, एक बड़ी उपलब्धि तब हासिल की जब उन्हें हरियाणा के सबसे कम उम्र के महाधिवक्ता के रूप में नियुक्त होने का गौरव प्राप्त हुआ। इसके तुरंत बाद, मार्च 2001 में, उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया। उन्होंने नौ जनवरी, 2004 तक महाधिवक्ता के पद पर कार्य किया। यहां से उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।
न्यायिक जिम्मेदारियों के बीच भी, शिक्षा के प्रति उनका प्रेम कम नहीं हुआ। सन 2011 में, उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय से कानून में स्नातकोत्तर या एलएलएम की डिग्री में प्रथम श्रेणी पाकर एक और विशिष्टता हासिल की।
उन्होंने 23 फरवरी, 2007 से दो लगातार कार्यकालों के लिए, 22 फरवरी, 2011 तक, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण की शासी निकाय के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवाएँ दीं। वह वर्तमान में भारतीय विधि संस्थान की विभिन्न समितियों के सदस्य भी हैं।
उन्होंने पांच अक्टूबर, 2018 को, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभाला।
इसके बाद, 24 मई, 2019 को, उन्हें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। उच्चतम न्यायालय में अपनी जिम्मेदारियों के साथ-साथ, वह 12 नवंबर, 2024 से उच्चतम न्यायालय विधि सेवा समिति के अध्यक्ष का पद भी संभाल रहे हैं, जिसके माध्यम से वे जरूरतमंदों तक कानूनी सहायता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
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