दीमापुर , नवंबर 27 -- नागा स्टूडेंट फेडरेशन (एनएसएफ) ने भारत को 'हिन्दू राष्ट्र' बताने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवन की निंदा करते हुए गुरुवार को कहा कि ऐसी टिप्पणी असंवैधानिक होने के साथ-साथ देश की आत्मा पर भी हमला है।
फेडरेशन ने एक बयान में कहा कि ऐसी टिप्पणी न सिर्फ असंवैधानिक है बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्षतावादी, बहुलवादी और लोकतांत्रिक लोकाचार पर हमला भी है। भारत की धर्मनिरपेक्ष पहचान कोई वैकल्पिक सिद्धांत नहीं है जिसे बदला जा सके, बल्कि यह संविधान का एक बाध्यकारी आदेश है जो हर धर्म, आस्था और सांस्कृतिक पहचान वाले नागरिक के लिए समान अधिकार, सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
बयान में कहा गया कि एकल "हिंदू राष्ट्र" की अवधारणा समानता के संवैधानिक वादे को खतरनाक रूप से कमजोर करती है और गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का उल्लंघन करती है। फेडरेशन ने कहा कि वह इस बात से बेहद चिंतित है कि प्रभावशाली पदों से इस तरह के विभाजनकारी बयान सामने आ रहे हैं जो अल्पसंख्यक समुदायों की कीमत पर बहुसंख्यकवादी आख्यानों को बढ़ावा दे रहे हैं।
बयान में कहा गया, "हमने देशभर में ईसाई, मुस्लिम, सिख, बौद्ध और आदिवासी मूलनिवासी समूहों सहित अलग-अलग धार्मिक और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव, द्वेषपूर्ण हिंसा और संस्थागत पूर्वाग्रह के मामले देखे हैं।"फेडरेशन के अनुसार, इबादतगाहों के अपमान, भीड़ हिंसा, बलपूर्वक धर्मांतरण के दावों से लेकर धार्मिक आधार पर प्रोफाइलिंग तक, अल्पसंख्यक समुदायों को असहिष्णुता का दंश झेलना पड़ रहा है। साथ ही इस सब के खिलाफ सरकार की प्रतिक्रिया नाकाफ़ी रही है।
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