अंबिकापुर, सितंबर 26 -- नवरात्र के पावन पर्व के अवसर पर छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का ऐतिहासिक वनेश्वरी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। अंबिकापुर शहर से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर न केवल अपनी आध्यात्मिक महत्ता के लिए बल्कि इससे जुड़ी अनूठी पौराणिक मान्यताओं के लिए भी प्रसिद्ध है।
स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, रियासतकाल में यह मंदिर पागल हाथियों के 'इलाज' के लिए जाना जाता था। मान्यता है कि उस दौरान किसी हाथी के पागल हो जाने पर उसे इस मंदिर में लाया जाता था और कुछ दिनों बाद वह ठीक हो जाता था। मंदिर परिसर में स्थित एक हाथी के आकार के विशाल पत्थर को लेकर यह विश्वास प्रचलित है कि यह एक पागल हाथी था जिसे देवी के श्राप के बाद पत्थर का रूप धारण करना पड़ा।
मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह स्थान वनदेवी का साक्षात स्वरूप माना जाता है। यहां आने वाले भक्तों की अटूट आस्था है कि माता की कृपा से हर मनोकामना पूर्ण होती है। नवरात्र के दौरान यहां भक्तों का ताँता लगा रहता है।
एक श्रद्धालु प्रकाश सोनी ने कहा,"हमारे पूर्वज बताते हैं कि यहां की दिव्य शक्ति न केवल हाथियों, बल्कि मानसिक व्याधियों से पीड़ित लोगों को भी ठीक करती थी। इस आस्था के कारण आज भी दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।"लगभग 15 एकड़ के विशाल वन क्षेत्र में स्थित इस मंदिर की प्रतिमा प्राकृतिक रूप से पत्थरों से निर्मित मानी जाती है। नवरात्रि के विशेष मौके पर मंदिर प्रबंधन द्वारा विशेष पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।
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