रायपुर , नवंबर 24 -- आंध्रप्रदेश में नक्सल कमांडार माडवी हिडमा की पुलिस मुठभेड़ में मौत की शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से की गई है, यह शिकायत हैदराबाद में रहने वाले डॉक्टर कार्तिक नवायन ने की है।

डॉक्टर कार्तिक नवायन अधिवक्ता और मानव अधिकार कार्यकर्ता हैं। वह आंध्रप्रदेश राज्य के मानव अधिकार फोरम में भी रहे हैं।

आयोग ने इस शिकायत को डायरी दर्ज कर लिया है। आयोग ने शिकायत दर्ज करके, सूचना शिकायत शिकायतकर्ता को दी है।

गौरतलब है कि आंध्रप्रदेश पुलिस ने 18 और 19 नवंबर को मारेडुमिल्ली के जंगलों में मुठभेड़ होने की जानकारी मीडिया को दी थी। मुठभेड़ की जानकारी एएसआर जिले के पुलिस अधीक्षक अमित बरदर ने मीडिया को दी थी। 18 नवंबर को स्थानीय पुलिस ने माड़वी हिड़मा सेंट्रल कमेटी मेंबर और उसकी पत्नी मड़कम राजे उर्फ राजक्का और अन्य चार को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था।

इस मुठभेड़ के दूसरे दिन 19 नवंबर को फिर से सात नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा आंध्रप्रदेश की पुलिस ने किया। मुठभेड़ में सेंट्रल कमेटी मेम्बर मित्तुरी जोगा राव उर्फ टेक शंकर, ज्योति उर्फ सरिता, सुरेश उर्फ रमेश लोकेश उर्फ गणेश सैन्यु उर्फ वासु, अनिता और शम्मी को मार गिराने का दावा किया गया था।

शिकायतकर्ता ने आयोग को एक राष्ट्रीय अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित हुए 20 और 21 नवम्बर की रिपोर्ट्स को संदर्भ के तौर पर दिया है। शिकायतकर्ता के ही मुताबिक, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश के स्थानीय अखबारों में इस कथित मुठभेड़ों को लेकर खबरें प्रकाशित हुई हैं, दोनों ही राज्यों में काम कर रहे सिविल सोसायटीज और मानव अधिकार के लिए काम करने वाले संगठनों ने कथित मुठभेड़ की जांच होनी चाहिए के तथ्य पर जोर दिया है। एक राष्ट्रीय अंग्रेजी अखबार ने कथित तौर पर इन रिपोर्ट्स में "फर्जी मुठभेड़ किया गया" का जिक्र है।

छत्तीसगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी और आदिवासी महासभा के मनीष कुंजाम ने आंध्र प्रदेश राज्य में हुए मुठभेड़ों को "फर्जी मुठभेड़" कहा है। पूर्व विधायक और आदिवासी महासभा छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष मनीष कुंजाम ने सुकमा में 21 नवम्बर को प्रेस वार्ता लेकर पोलित ब्यूरो के सदस्य देव जी और आंध्रप्रदेश पुलिस पर मिलीभगत होने का आरोप लगाया है। मनीष के मुताबिक, देव जी आंध्र प्रदेश सरकार और पुलिस से मिला हुआ है, आंध्रप्रदेश में अपनी बखत बढ़वाने के लिए छत्तीसगढ़ के नक्सलियों गुमराह करके आंध्रप्रदेश में ले जाकर आत्म समर्पण करवा रहा है। माड़वी हिड़मा को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह आदिवासी नक्सली था, छत्तीसगढ़ के बहुत सी घटनाओं का मास्टर माइंड और जिम्मेदार हिड़मा को बताया जाता है! हिड़मा की प्राथमिक शिक्षा भी नहीं हुई फिर भी वह ताड़मेटला, झीरम जैसी बड़ी घटनाओं का मास्टर माइंड कैसे हो सकता है।

माड़वी हिड़मा समेत तेरह लोगों के कथित फर्जी मुठभेड़ को लेकर शिकायतकर्ता डॉक्टर कार्तिक नवायन से यूनीवार्ता ने बात की। बातचीत के सवालों का जवाब देते हुए डॉक्टर कार्तिक ने कहा - संविधान में मानव अधिकार सबके लिए समान है, नक्सलियों के द्वारा की गई घटनाओं पर जुर्म दर्ज किया जाता है, दर्ज मुकदमों के आधार गिरफ्तारी होती है और कई बार सजा होती है, दर्ज मुकदमों की वजह से कुछ बार पीड़ितों को मुआवजा भी मिले, ऐसे बहुत से उदाहरण हैं। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को लिखी शिकायत की वजह यही है, माड़वी हिड़मा समेत 13 लोगों के मानव अधिकारों की बात क्यों नहीं होनी चाहिए?शिकायतकर्ता ने आयोग से मांग की है कि इस फर्जी मुठभेड़ पर आप (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) स्वत: संज्ञान लें,जाँच सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से करवाया जाए। शिकायतकर्ता ने आयोग को लिखा है कि वो आंध्रप्रदेश पुलिस को एक निर्देश जारी करें कि वो शवों को सुरक्षित करें, शवों का फिर से पोस्ट मॉर्टम किया जाए, पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट मृत नक्सलियों के परिजनों को दिया जाए, पोस्ट मॉर्टम की वीडियोग्राफी की जाए, मुठभेड़ के दौरान उपयोग में लाए गए हथियार, बैलेस्टिक मैटीरियल, पोस्ट रिपोर्ट्स, पंचनामा और एनकाउंटर साइट को सुरक्षित रखा जाए,मुठभेड़ में शामिल पुलिस जवानों के खिलाफ प्राथमिक दर्ज करने एवं मृतकों के परिजनों को दस-दस लाख रुपयों के मुआवजे की मांग भी की गई है।शिकायतकर्ता ने जांच एक तय सीमा में खत्म हो यह भी आग्रह किया गया है। शिकायत के बिंदुओं में यह भी लिखा है कि आयोग न्याय के परिदृश्य में यदि कुछ और भी उचित समझे तो जरूर करे। अपनी शिकायत में डॉक्टर नवायन ने आयोग को बताया है कि उनकी खुद साल 1993 की एक गाइड लाइन है, इस गाइड लाइन के मुताबिक, हिरासत और मुठभेड़ आदि में हुए मौतों की जानकारी आयोग को 48 घंटों के भीतर दिए जाने के निर्देश हैं।

नक्सलियों (वामपंथी उग्रवादियों) के मानव अधिकारों के बारे में बात करने वालों को अर्बन नक्सल का टैग लाइन दिया जाने लगा है इस बारे में डॉक्टर कार्तिक नवायन ने कहा - मानव अधिकार फोरम में रहा हूँ, ना मैं नक्सलियों का समर्थक हूँ और ना ही नक्सलियों के प्रति कोई सॉफ्ट कॉर्नर है, मैं तो संविधान की धारा 21 में कहे गए राईट टू लाइफ की बात कर रहा हूँ, संदिग्ध मौतों के बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं, कानून सबके के लिए बराबर है।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित