धमतरी , अक्टूबर 03 -- पूरे देश में गुरुवार को विजयादशमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। जगह-जगह रावण दहन हुआ, आतिशबाजी और मेले लगे। पर छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां न तो रावण दहन होता है और न ही होलिका दहन। यहां तक कि किसी की मृत्यु होने पर गांव में चिता तक नहीं जलाई जाती। यह अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी उसी तरह निभाई जा रही है।
यह दास्तान है धमतरी मुख्यालय से कुछ किलोमीटर दूर बसे तेलीन सत्ती गांव की। ग्रामीण बताते हैं कि गांव में स्थित तेलीन सत्ती देवी मंदिर ही इस परंपरा का आधार है। मान्यता है कि कई वर्ष पहले इस गांव की सत्ती नामक युवती ने अन्याय और अपमान के बाद सती हो जाने का संकल्प लिया और चिता में समा गई। तभी से यह नियम बन गया कि गांव की सीमा के भीतर किसी भी प्रकार का दहन नहीं होगा।
ग्रामीणों का कहना है कि अगर कोई इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश करता है तो पूरे गांव को उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। यही वजह है कि यहां दशकों से न रावण दहन होता है, न होलिका दहन और न ही शव-दाह। यदि किसी मृतक का अंतिम संस्कार करना पड़ता है तो परिजन गांव की सरहद से दूर ले जाकर चिता जलाते हैं।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह परंपरा मात्र अंधविश्वास नहीं बल्कि सत्ती देवी की आस्था से जुड़ी है। उनका विश्वास है कि यदि नियम तोड़ा गया तो देवी नाराज हो जाएंगी और गांव पर विपत्ति आ जाएगी।
दिलचस्प बात यह है कि आज की युवा पीढ़ी भी इस परंपरा को पूरी निष्ठा के साथ आगे बढ़ा रही है। ग्रामीण कहते हैं कि चाहे लोग इसे आस्था मानें या अंधविश्वास, लेकिन उनके लिए यह गांव की अस्मिता और आस्था का प्रश्न है।
जहां पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक स्वरूप रावण दहन किया जाता है, वहीं तेलीन सत्ती गांव इस परंपरा से अलग एक अद्भुत मिसाल पेश करता है।
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