श्रीनगर , अक्टूबर 10 -- अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के उपलक्ष्य में उत्तराखंड के जनपद पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित सहकारिता मेले में थारू जनजातीय संस्कृति के रंगों से सराबोर रही। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप थारू सांस्कृतिक उत्थान समिति, खटीमा के कलाकारों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों से ऐसा समा बांधा कि पूरा मैदान तालियों की गूंज और 'वंस मोर' की मांग से गूंज उठा।थारू जनजाति के प्रसिद्ध लोक कलाकार बंटी राणा और पहली थारू लोक गायिका रिंकू राणा के नेतृत्व में थारू समुदाय के कलाकारों ने पारंपरिक झींझी नृत्य, थारू होली, और मधुर थारू लोकगीतों की प्रस्तुति दी। 'बिडरु ना माणि मि नी जानू चड़फूड', 'सुनले दगड़िया', और 'लागो ना भोजी मेरी फूलदी डालिया' जैसे गीतों पर दर्शक मंत्रमुग्ध होकर झूम उठे।

थारू जनजातीय लोकनृत्य की मनोहर लय और ढोल-मांदर की थाप ने मंच से लेकर दर्शकदीर्घा तक उत्सव का माहौल बना दिया। गढ़वाल की शांत शाम थारू संस्कृति के उल्लास से जीवंत हो उठी।

थारू जनजाति की यह सांस्कृतिक प्रस्तुति उत्तराखंड की सांस्कृतिक विविधता में एकता का सुंदर उदाहरण रही। गढ़वाल और तराई के सांस्कृतिक सेतु को जोड़ने वाली यह प्रस्तुति सहकारिता मेले की ऐतिहासिक यादों में दर्ज हो गई।

सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने थारू कलाकारों के उत्साह और सांस्कृतिक योगदान की सराहना की तथा कहा कि इस तरह के आयोजन राज्य की समृद्ध जनजातीय परंपराओं को नई पहचान दे रहे हैं।

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