लखनऊ , नवंबर 24 -- निर्वासित तिब्बती सरकार के राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने कहा है कि तिब्बत में नदियों पर बड़े बांध बनाने से उनके रास्ते में पड़ने वाले देशों पर भी दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
श्री त्सेरिंग सोमवार को लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा ए.पी. सेन हॉल में 'तिब्बत अवेयरनेस टॉक: सिक्योरिटी एंड एनवायरनमेंट' विषय पर आयोजित व्याख्यान में कहा, "तिब्बत एशिया की प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है, जिन पर लगभग दो अरब लोगों की आजीविका निर्भर है।" उन्होंने तिब्बत में बड़े पैमाने पर बांध निर्माण को चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसके अन्य देशों पर भी दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
उन्होंने तिब्बती इतिहास, संस्कृति और वर्तमान परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए कहा कि तिब्बती लिपि भारतीय गुप्त लिपि से विकसित हुई है तथा तिब्बत ने भारत की प्राचीन नालंदा परंपरा की बौद्ध शिक्षाओं को संरक्षित कर सदियों तक आगे बढ़ाया है।
तिब्बत के आधुनिक इतिहास का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि 1950 में चीनी कब्जे की परिस्थिति में परमपावन दलाई लामा ने 17 नवंबर को नेतृत्व ग्रहण किया, जिसकी इस वर्ष 75वीं वर्षगांठ है। उन्होंने 17 सूत्रीय समझौते, चीन के साथ शांतिपूर्ण वार्ता के प्रयासों तथा बाद में दलाई लामा और हजारों तिब्बतियों के भारत में आगमन का उल्लेख किया। उन्होंने तिब्बती लोकतांत्रिक संस्थाओं के गठन तथा भारत की जनता और सरकार द्वारा दिए गए निरंतर सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि तिब्बती संघर्ष पूर्णत: अहिंसा और शांतिपूर्ण समाधान पर आधारित है। तिब्बतियों द्वारा किए गए आत्मदाह की घटनाओं को उन्होंने तिब्बती संस्कृति और पहचान पर पड़ रहे दबाव के विरुद्ध एक चरम विरोध के रूप में वर्णित किया।
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