ग्वालियर , दिसंबर 19 -- मध्यप्रदेश के ग्वालियर में आयोजित हो रहे भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव 101वें तानसेन समारोह की चौथे दिन की सांध्यकालीन संगीत सभा में कर्नाटक संगीत की लयात्मक वायलिन, घरानेदार गायिकी की गहन अनुभूति और काशी घराने के सितार की गंभीर गरिमा ने श्रोताओं को आत्मिक आनंद से भर दिया।

परंपरा के अनुरूप सांध्यकालीन सभा का शुभारंभ शंकर गांधर्व संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर के विद्यार्थियों द्वारा ध्रुपद गायन से हुआ। राग शंकरा में चौताल की रचना "शंकर शिव महादेव" ने वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से आलोकित कर दिया। पखावज पर मुन्नालाल भट्ट, हारमोनियम पर टीकेंद्र नाथ चतुर्वेदी की संगत और स्वर संयोजन में श्री रोहन पंडित ने प्रस्तुति को गरिमामय ऊंचाई प्रदान की।

ध्रुपद के पश्चात पहली मुख्य प्रस्तुति में कर्नाटक संगीत पद्धति की वायलिन जुगलबंदी ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित, 'प्रिंस ऑफ मैसूर' के रूप में विख्यात डॉ. मैसूर मंजूनाथ और उनके पुत्र श्री सुमंथ मंजूनाथ ने मंच संभाला।

वायलिन के पश्चात मंच पर सुविख्यात गायिका सुश्री कलापिनी कोमकली ने राग मारू बिहाग में बड़े खयाल "रसिया हो न जाओ" के माध्यम से गंभीरता और श्रृंगार रस का सुंदर समन्वय रचा।

इसके बाद मध्य लय की बंदिश "सुनो सखी सैयां"-जो उनके पिता एवं गुरु पद्मभूषण कुमार गंधर्व की अमूल्य रचना है-ने सभा को भावुक कर दिया। सभा का समापन पद्मश्री पंडित शिवनाथ मिश्र और उनके पुत्र देवव्रत मिश्र के सितार वादन से हुआ।

मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग के लिए उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा, जिला प्रशासन, नगर निगम ग्वालियर तथा मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग के सहयोग से आयोजित यह समारोह, भारतीय शास्त्रीय संगीत की अखंड परंपरा और तानसेन की अमर विरासत को विश्व पटल पर गौरवपूर्ण ढंग से प्रतिष्ठित कर रहा है।

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