नोएडा, सितंबर 30 -- उत्तर प्रदेश स्थित नोएडा के निजी विवि में मंगलवार को फार्मा में नए आयाम एवं ड्रग खोज और वितरण में एआई नैनो-इंजीनियरिंग और जीनोमिक्स का एकीकरण (एफआईपीआईएनजीडी 2025) विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।
इस सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया के अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और भारतीय विश्वविद्यालयों के जाने-माने शिक्षाविदों के साथ वैज्ञानिक विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए भारत भर से 460 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
अपोलो हॉस्पिटल्स एजुकेशनल एंड रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष पद्म भूषण प्रोफेसर एन के गांगुली द्वारा सम्मेलन में मौजूद प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि क्लिनिकल फार्मेसी लगातार विकसित हो रही है इसलिए नई पद्धतियों और तकनीकों को सीखते रहना और खुद को अपडेट करते रहना बहुत जरूरी है। यह एआई का युग है, जिसमें सीखने और खोजने के लिए बहुत कुछ है जो पाठ्य पुस्तकों में नहीं मिलता। यदि आप विज्ञान के क्षेत्र में हैं, तो आपको नई चीजें सीखने का जुनून और जिज्ञासा होनी चाहिए। अपोलो में, हम 100 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए सेंटेनरीयंस नामक एक प्रोजेक्ट चला रहे हैं, जिसके तहत हम जीनोमिक सेंसिंग के माध्यम से उनके मस्तिष्क का अध्ययन कर रहे हैं। कुछ वृद्ध लोग मानसिक रूप से बहुत सक्रिय हैं, उनमें कोई विकार या बीमारी नहीं है। ऐसे प्रोजेक्ट जीनोम विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं और ऐसे अध्ययनों से नए परिणाम और निष्कर्ष प्राप्त होते हैं।
कार्यक्रम सम्मेलन में उपस्थित भारत सरकार के अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की वैज्ञानिक डॉ. दीप्ति कक्कड़ ने कहा कि एआई जीनोमिक डेटा का विश्लेषण करके मरीजों की खास दवाओं पर प्रतिक्रिया का अनुमान लगाता है, जिससे इलाज को बेहतर बनाया जा सकता है। एआई आधारित प्लेटफॉर्म लक्षित दवा वितरण के लिए नैनो पार्टिकल्स डिजाइन करते हैं, जिससे घुलनशीलता और प्रभाव शीलता बढ़ती है। नैनो-इंजीनियरिंग लक्षित वितरण प्रणाली विकसित करती है, जिससे साइड इफेक्ट कम होते हैं और इलाज के परिणाम बेहतर होते हैं। इसलिए, एआई नैनो-इंजीनियरिंग और जीनोमिक्स को एक साथ इस्तेमाल करना दवा खोज और वितरण में बहुत प्रभावी है। अनुसंधान में एक इंटरडिसिप्लिनरी दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है, जो सफलता की ओर ले जा सकता है। छात्रों को अपने विचार और ज्ञान एक-दूसरे के साथ साझा करना चाहिए और अपने ज्ञान को बढ़ाना चाहिए, क्योंकि कौशल और ज्ञान को अपग्रेड करना बहुत जरूरी है।
एमिटी शिक्षण समूह के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. अशोक के. चौहान ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्लिनिकल और फार्मास्यूटिकल साइंस सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। एमिटी में हम फार्मास्यूटिकल साइंस के लिए एक वैश्विक कंसोर्टियम बनाना चाहते हैं, जो वास्तव औषधी के क्षेत्र में क्रांति ला सकता है। हमें क्लिनिकल मेडिसिन की दुनिया को बदलने के लिए एक अभियान और मिशन शुरू करना चाहिए, क्योंकि वर्तमान की यही आवश्यकता है।
एमिटी विश्वविद्यालय के हेल्थ एंड एलाइड साइंसेज के डीन डा भूदेव सी. दास ने कहा कि एआई नैनो-इंजीनियरिंग और जीनोमिक्स को एक साथ इस्तेमाल करना दवा खोज और वितरण में क्रांति ला रहा है और लक्षित कैंसर थेरेपी ंको बेहतर बना रहा है। एआई डिजाइन किए गए नैनोपार्टिकल्स सीधे कैंसर कोशिकाओं में कीमोथेरेपी पहुंचाते हैं, जिससे प्रभाव शीलता बढ़ती है और साइड इफेक्ट कम होते हैं। जीनोमिक जानकारी से व्यक्तिगत उपचार रणनीतियों का विकास होता है, जिससे मरीजों के परिणाम बेहतर होते हैं।
दो दिवसीय सम्मेलन के मध्य कॉन्फ्रेंस के दौरान चुनौतियां और अवसर दवा खोज और वितरण अनुसंधान पर भारत ऑस्ट्रेलियाई दृष्टिकोण विषय पर कई सत्र और एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई, जिसमें मोनाश यूनिवर्सिटी मलेशिया के डॉक्टर महेंद्रन शेखर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी, ऑस्ट्रेलिया, डॉक्टर केशव राज पौडेल, यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया की डॉक्टर वंदना गुलाटी, भारत सरकार के सीसीआरयूएम, आयुष की सहायक निदेशक (यूनानी), तकनीकी प्रमुख डॉक्टर गज़ा़ला जावेद, और विभिन्न सम्मानित पैनलिस्ट शामिल हुए।
सम्मेलन के समापन समारोह में आयुष मंत्रालय के सीसीआयूएम के वैज्ञानिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर आसिम अली खान, एमिटी शिक्षण समूह के संस्थापक अध्यक्ष डा अशोक कुमार चौहान, भारतीय चिकित्सा एवं होम्योपैथी भेष जसंहिता आयोग के निदेशक डा रमन मोहन सिंह, एमिटी विश्वविद्यालय के डीन हेल्थ एंड एलाइड साइंसेज डॉक्टर भूदेव सी दास, एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ फार्मेसी के प्रमुख डा एच आर चिटमें ने अपने विचार रखे।
आयुष मंत्रालय के सीसीआयूएम के वैज्ञानिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर आसिम अली खान ने कहा कि यह सम्मेलन पारंपरिक चिकित्सा पद्धति और नवाचार का मिश्रण है। आज नए अनुसंधानों एवं विचारों को पारंपरिक ज्ञान जैसे आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा आदि से जोड़ कर ज्ञान एवं समकालीन अभ्यास के मध्य सेतु निर्माण करना होगा। कोई भी ज्ञान प्रणाली नेपथ्य में कार्य नही कर सकती इसके लिए अनुसंधान व नवाचारों को एआई की सहायता से नये मॉडल विकसित करने होगें। उन्होनें कहा कि आप युवाओं को नए दवाओ एवं किफायती दवाओ की खोज करने की जिम्मेदारी उठानी होगी।
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