जौनपुर , नवम्बर 25 -- उत्तर प्रदेश जौनपुर में गुरुद्वारा तप स्थान गुरु तेग बहादुर रासमंडल में मंगलवार को सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर का 350वें शहीदी दिवस मनाया गया, गुरुद्वारा में रखा गया गुरु का तीर और गुरुग्रंथ साहिब गुरु की याद दिलाता है।

इस अवसर पर गुरुद्वारा में शबद कीर्तन का आयोजन रागी जत्था सरदार बरिंदर सिंह प्रयागराज के द्वारा किया गया और गुरुवाणी का पाठ भी किया गया, इसके बाद लोगों को प्रसाद वितरित किया गया ।

गुरुद्वारा के मुख्यग्रंथी सरदार जिओपाल सिंह ने कहा कि देश में जब मुगलों का आधिपत्य मुगल सम्राट औरंगजेब का शासनकाल था, धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से परिस्थितियां प्रतिकूल थीं, ऐसे माहौल में गुरु तेग बहादुर देशाटन पर निकले । उन्होंने कहा कि सिख धर्म के प्रचार-प्रसार के सिलसिले में असम से दिल्ली वापसी के समय वर्ष 1670 में गुरुजी जौनपुर आये थे। उस समय उन्होंने गुरुद्वारा रासमंडल की पवित्र भूमि पर कई माह रहकर विश्राम और तप किया था । उन्होंने कहा कि यहां से जाते समय गुरुजी ने अपना तीर और अपने हाथ से लिखा गुरुग्रंथ साहिब यहां छोड़ दिया था, जो आज भी इस गुरुद्वारा में सुरक्षित है ।

उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर द्वारा लिखे गए गुरुग्रंथ साहिब को जीर्णोद्धार के लिए दिल्ली भेजा गया है। इसमें दो से ढाई लाख रुपये खर्च आएगा। मुख्यग्रंथी ने कहा कि यह पवित्र ग्रंथ अगले वर्ष में मकर संक्रांति तक गुरुद्वारे में वापस आ जायेगा । उन्होंने कहा कि 1430 पृष्ठों के गुरुग्रंथ साहिब की हस्त लिखित प्रति सफेद रंग के उत्तम कोटि के कागज पर काली रोशनाई से स्पष्ट अक्षरों में लिखी गई है। उन्होंने कहा कि आज भी गुरुद्वारा में रखा गया गुरु का तीर और गुरुग्रंथ साहिब गुरु की याद दिलाता है ।

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