मैसूर , अक्टूबर 03 -- कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को कहा कि जीएसटी सरलीकरण से राज्य को अनुमानित 15,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने की आशंका है और राज्य सरकार केंद्र से यह धनराशि प्राप्त करने के लिए कानूनी कार्रवाई का सहारा लेगी।

श्री सिद्धारमैया ने अपने आवास पर मीडिया को संबोधित करते हुए केन्द्र सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि यह आगामी बिहार चुनावों से प्रेरित प्रतीत होता है। उन्होंने कहा, "हम वह धनराशि प्राप्त करने के लिए कानूनी प्रकिया का सहारा लेंगे।"उन्होंने इस कहा कि वर्ष 2017 में निर्धारित जीएसटी दरें पिछले आठ वर्षों में आवश्यकता से अधिक रही हैं। उन्होंने कहा, "क्या सरकार अब लोगों से वसूला गया अतिरिक्त जीएसटी वापस करेगी? अभी जीएसटी दरें कम करना और चुनाव-प्रेरित इन कटौतियों के लिए खुद को बधाई देना उचित नहीं है।"केंद्रीय अनुदानों में देरी का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अनुमानित 17,000 करोड़ रुपये की राशि में से कर्नाटक को केवल 3,200 करोड़ रुपये ही जारी किए गये हैं। उन्होंने इसकी तुलना उत्तर प्रदेश से की, जिसे केंद्रीय निधि का 18 प्रतिशत मिलता है, जबकि कर्नाटक को केवल 3.5 प्रतिशत ही मिलता है।

उन्होंने कहा, "कर्नाटक केंद्र को करों के रूप में 4.5 लाख करोड़ रुपये का योगदान देता है, फिर भी हमें प्रति रुपये केवल 14 पैसे मिलते हैं। 15वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित अनुदान - 5,490 करोड़ रुपये, झील विकास के लिए 3,000 करोड़ रुपये, सड़कों के लिए 3,000 करोड़ रुपये, भद्रा बांध परियोजना के लिए 5,000 करोड़ रुपये जारी नहीं किए गए हैं। यदि आवश्यक हुआ तो पिछली बार की तरह हम कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेंगे।"श्री सिद्धारमैया ने कहा कि सीमित केंद्रीय सहायता के बावजूद, उनकी सरकार अपनी पांच गारंटियों को लागू करना जारी रखेगी। उन्होंने आगे कहा, "जीएसटी सरलीकरण के कारण राज्यों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। कर्नाटक को अनुमानित 15,000 करोड़ रुपये का वार्षिक नुकसान होगा। कर्नाटक के भाजपा सांसद केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हैं। वे राज्य के हितों को प्राथमिकता नहीं देते।"मुख्यमंत्री ने राज्य में चल रहे जातिगत सर्वेक्षण पर कहा कि 80 लाख घरों के लगभग तीन करोड़ लोगों को शामिल करते हुए सर्वेक्षण पूरा हो चुका है और शेष 1.8 करोड़ घरों का सर्वेक्षण 7 अक्टूबर तक पूरा होने की उम्मीद है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह सर्वेक्षण स्वैच्छिक है और इसका उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक आंकड़े एकत्र करना है, न कि लोगों को जाति के आधार पर बांटना।

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