नयी दिल्ली , अक्टूबर 10 -- उच्चतम न्यायालय ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार को शुक्रवार को और चार सप्ताह का समय दिया।

शीर्ष अदालत ने सबसे पहले 14 अगस्त को केंद्र से इस मामले में याचिका पर जवाब देने को कहा था।

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद केंद्र सरकार को अतिरिक्त समय देने का फैसला किया।

पीठ ने कहा कि सभी पहलुओं पर विचार करते हुए निर्णय लिया जाना है और केंद्र इस पर विचार-विमर्श कर रहा है।

पीठ ने पर्यटकों पर हुए आतंकवादी हमले का जिक्र करते हुए कहा, "सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद निर्णय लिया जाना है...देखिए पहलगाम में क्या हुआ।"उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के एक समूह ने 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में 26 पर्यटकों की उनके धर्म के बारे में पूछकर हत्या कर दी थी। इस दिल दहलाने वाली घटना के बाद पाकिस्तान में आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत अभियान चलाया गया था।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुये और एक निर्वाचित सरकार बनी। उन्होंने कहा कि पिछले छह वर्षों में जम्मू-कश्मीर में उल्लेखनीय प्रगति हुयी है।

उन्होंने दलील दी कि हाल के दिनों में पहलगाम हमले सहित कुछ घटनाएँ हुई हैं और राज्य का दर्जा बहाल करने पर अंतिम निर्णय लेने से पहले इन सभी घटनाओं पर विचार करना होगा।

श्री मेहता ने याचिकाओं पर जवाब देने के लिए और समय माँगा। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों पर जवाब देने के लिए केंद्र को चार सप्ताह का समय दिया।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि शीर्ष अदालत के आदेश में यह उल्लेख किया गया है कि चुनावों के बाद राज्य का दर्जा वापस कर दिया जाएगा। यह भी दलील दी गई कि जम्मू-कश्मीर मंत्रिमंडल ने उपराज्यपाल द्वारा राज्य का दर्जा बहाल करने के मामले को केंद्र के समक्ष रखने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है।

शिक्षाविद ज़हूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अहमद मलिक ने जम्मू-कश्मीर को "शीघ्र" राज्य का दर्जा बहाल करने के केंद्र के आश्वासन को लागू करने के लिए एक याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे वकील ने शीर्ष अदालत के दिसंबर 2023 के फैसले में दर्ज एक वचनबद्धता का हवाला दिया, जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखा गया था।

इस पर, मेहता ने कहा, "यह एक अनोखी समस्या है। इसमें व्यापक चिंताएँ शामिल हैं। बेशक यह एक गंभीर वचनबद्धता थी, लेकिन कई कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है।"उन्होंने दावा किया कि कुछ लोग एक विशिष्ट बात फैला रहे हैं और केंद्र शासित प्रदेश की एक भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं।

संविधान पीठ ने 11 दिसंबर, 2023 को सर्वसम्मति से अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा, जिसने तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था।

शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था कि केंद्र शासित प्रदेश में सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराए जाएँ और इसका राज्य का दर्जा "शीघ्र" बहाल किया जाए।

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