रायपुर/बस्तर , नवंबर 26 -- छत्तीसगढ़ में बुधवार को चार नई श्रम संहिताओं की अधिसूचना के विरोध में मजदूरों-किसानों का आक्रोश प्रदेशभर में व्यापक और संगठित स्वरूप में सामने आया।

ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के आव्हान पर यह दिन श्रमिक अधिकारों पर सीधे हमले के विरोध और संविधान के मूल्यों के प्रति निष्ठा के संकल्प के रूप में मनाया गया। किसान आंदोलन की चौथी वर्षगांठ और संविधान दिवस की पृष्ठभूमि को जोड़ते हुए विरोध प्रदर्शन रायपुर, भिलाई, दल्लीराजहरा, कोरबा, सरगुजा, बिलासपुर, रायगढ़, अंबिकापुर और बस्तर संभाग सहित अनेक प्रमुख केंद्रों पर आयोजित किए गए।

प्रेस विज्ञप्ति से मिली जानकारी के मुताबिक, रायपुर के अंबेडकर चौक पर सैकड़ों की संख्या में जुटे श्रमिकों-किसानों ने नई श्रम नीति को 'श्रमिकों को मालिकों की दया पर छोड़ने वाला कदम' बताते हुए इसे तुरंत निरस्त करने की मांग की। संयुक्त मंच के संयोजक धर्मराज महापात्र ने कहा कि "श्रम सुधार के नाम पर बने ये कोड 8 घंटे के काम, स्थायी भर्ती, सप्ताहिक अवकाश, महिला श्रमिकों के हितों और ट्रेड यूनियन बनाने जैसे संवैधानिक-लोकतांत्रिक संरक्षण को औपचारिक बनाकर समाप्त करने का प्रयास हैं। इससे लेबर कोर्ट केवल कागजी संस्था बनकर रह जाएगा और शोषण में भारी वृद्धि होगी।" उन्होंने यह भी कहा कि काम के घंटे 8 से 12 करने, 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों में हायर-एंड-फायर को खुली छूट, हड़ताल पर कठोर प्रतिबंध और यूनियन पंजीयन को जटिल बनाना औद्योगिक संतुलन को नष्ट करेगा।

भिलाई और कोरबा जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में कर्मचारियों ने कार्यस्थलों पर काला फीता और बिल्ले लगाकर शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़ विरोध दर्ज कराया। बैंक, बीमा, डाक, बीएसएनएल, दवा प्रतिनिधि और असंगठित क्षेत्र के संगठनों के प्रमुख पदाधिकारी नवीन गुप्ता, मारुति डोंगरे, राजेश पराते, सुरेंद्र शर्मा, हरिराम पाल, दिनेश पटेल, ऋषि मिश्रा, डीसी मजूमदार, धार्मिणी सोनवानी सहित अनेक प्रतिनिधि मौजूद रहे, जिन्होंने कहा कि सामाजिक सुरक्षा और पेंशन फंड जैसे प्रावधान 'दिखावा' हैं जब तक वे कानूनी गारंटी में न बदलें।

मंच ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस सहित विपक्ष का समर्थन और संयुक्त किसान मोर्चा की सहभागिता से यह आंदोलन 14 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान तक विस्तारित और अधिक तीव्र होगा। हालांकि सरकार का पक्ष है कि दरों और नियमों के संशोधन से भविष्य में पारदर्शी मूल्य निर्धारण और न्यायसंगत मुआवजा संभव होगा, लेकिन संयुक्त मंच का कहना है कि संविधान और श्रमिक गरिमा से ऊपर कोई अधिसूचना नहीं हो सकती, और जब तक क्षेत्रवार वास्तविक आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप संशोधन नहीं किए जाते, संघर्ष और जन-जागरूकता अभियान जारी रहेंगे।

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